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________________ २२४ ] . महावीर चरित्र । : . . .. वधी क्रोध मान माया लोभ ये चार कषायोंको नष्ट कर देता है। ॥१७१॥ निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, त्यान गृद्धि, नरकं गति, नरक गत्यानुपूर्वी, तिर्यग्गति, तिर्यगत्यानुपूर्वी, ऐकेन्द्रिाद्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय ये चार जाति, आतप, उद्योत, स्थावर, सूक्ष्म, साधारण इन सोलह प्रकृतियोंका हे राजन् ! अनिवृत्तिगुणस्थान में स्थित हुभा शुद्धि सहित जीव क्षय करता है। और इसके बादः यतिरान उसी गुणस्थानमें आठ कपायोंको एक बारमें ही नए कर देता है ॥१७२-७३-७४॥ इसके बाद प्राप्त किया है शुद्ध वृत्तचारित्रको जिसने ऐसा वह धीर उसी गुणस्थानमें नपुंपंक वेइको नष्ट करता है, इसके बाद स्त्री वेदकोट करता है, और उसके भी बाद समस्त छह नो कषायोंको युगपत नष्ट कर देता है. ॥ १७ ॥ इसके बाद उसी गुणस्थानमें पुत्रदका मी. नाश कर बाद तीन संज्वलन कपायका-क्रोध, मान, मायाका पृथक् पृथक् नाश: करता है। लोम संचालन सूक्ष्मसाराय गुणस्थानके अंतमें नाशको · प्राप्त होता है ।। १७६ ॥ इसके बाद क्षीण कषाय वीतराग गुण। स्थानपर स्थित हुए. जीवके आन्त्य समयमें-अंतके समयसे पूर्वके: समयमें निद्रा और प्रबलाका नाश होता है ॥ १७७.। और • अंतके समयमें पांच ज्ञानावरण, चार प्रकारका दर्शनावरण. तथा. पांच.., प्रकारका अंतराय कर्म नाशको प्रप्त होता है.. : . ॥ १७८ ॥ इसके बाद दो बदनीय-साता. और .. असाता: मेंसे कोई एक. वेदनीय, देवगति, देवगत्यानुपूर्वी औदा रिकं, वैक्रियिक, आहारक, तैनस, कार्माण ये पांच शरीर, आठ: - स्पर्श, पांच रस, पांच संघात; पांच वर्ण, अगुरु लघु, उपघात, परपात :
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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