SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 218
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ .nnnnnnnnnnnnnnnnnn Annnnn. १९८] महावीर चरित्र । ..... आस्रव होता है ॥ २२ ॥ विद्वानोंको चारों कपायोंके साथ साथः । पांच इन्द्रिय पांच व्रत और पच्चीस क्रिया ये पहले-सापरायिक आस्रवके भेद समझने चाहिये ॥ २३ ॥ तीव्र मंद्र अज्ञात औरः . ज्ञात भावोंसे तथा द्रव्य उद्रेक-वीर्यसे आपमें विशेषता होती.. ' है । उसका साधन--अधिारणभूत द्वन्य दो प्रकारका है। और वे दो प्रकार जीव अजीव हैं ऐमा आगपके ज्ञाता कहते हैं ॥२४॥ संरम्भादिक और व.पायादिकवा परस्परमें गुणा करनेसे जीवाधि.. करणके एकसौ आठ भेद होते हैं। दूसरे-भनीवाधिकरणक निर्वर्तना': आदिक भेद होते हैं ॥ २५ ॥ शरीरधारियोंके ज्ञानावरण और दर्शनावरण के कारण आत्माके जाननेवाले-पर्वत देवादिने मात्सर्य अंतराय, प्रदोप, निहाआलादना और उपघात बताये हैं।२६। प्राणियोंके असाता वेदनीय कर्म का जो आस्रव होता है उसके कारण निज पर." या दोनोमें उत्पन्न हुए दुःख, शोक, आक्रंदन, ताप और हिमा-बंध ये हैं ॥ २७ ॥ साता वेदनीय कर्मसे आत्रके भेद ये हैं-समस्त : प्राणियोंपर अनुकंगा-दया करना, व्रतियोंको दान देना और राग : सहित अनुकंपा भी करना, योग-मन, वचन, कायकी समीचीन : प्रवृत्ति, क्षमा, शौच-लोम न करता इत्यादि ॥ २८ ॥ संघ-मुनिः: आयिका श्रावक श्राविका, धर्म, केवली, और सर्वज्ञोक्त श्रुत आगम, .. इनके अवर्णवादको-जो दोष नहीं हैं.उन दोपोंके लगानेको सम्पूर्ण प्राणियों के हितैषी यतिवरोंने जंतुके दर्शन मोहनीय कर्मकें आनाका कारण बताया है ॥ २९ ॥ कषायके उदयसे जीवके जो तीव-परिणाम मेद होते हैं उनको ही जीवादि.. पदार्थोके जाननेवाले सर्वज्ञ . देवने चारित्र मोहनीय कर्मके अस्त्राका कारण बताया है ॥ ३०॥
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy