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________________ १६८ ] महावीर चरित्र । ही हो ऐसे शोभन व्रतोंके धारक सुव्रत नामक मुनिको मतियुक्त, है आत्मा जिसकी ऐसे कनकध्वनने दूरसे देखा ॥ ३९-४१ ॥ खनानेको पाकर दरिद्वकी तरह अथवा दोनों नेत्रोंको पाकर जन्मान्धकी तरह मुनिको देखकर राजा भी शरीर में नहीं समा सकनेवाले हर्षसे विवश हो गया ।। ४२ ।। सब तरफसे संम्पूर्ण शरीर के हर्षित हुए रोमों-रोमांचोंके द्वारा जिवने अपने अंतःकरण के अनुरागको सूचित कर दिया है ऐसे राजाने अपने हाथोंको मुकुलित कमलके समान बनाकर धरतीपर लग गया है चूड़ामणि रत्न जिसका ऐसे शिरके द्वारा - शिरको नवाकर मुनिकी वंदना की ॥ ४३ ॥ मुनिनें उस राजाभ पापों का छेदन करनेवाली शांत दृष्टिके द्वारा तथा कर्मेका क्षय करनेवाले आशीर्वचन के द्वारा अत्यंत : नुग्रह किया । जो मुमुक्षु हैं - जिनकी मोक्ष होनेकी इच्छा रहती है उनकी भी बुद्धि: भव्य के विषय में निःस्पृह नहीं रहती ॥ ४४ ॥ : · उन मुनिके निकटमें सम्मुख खड़े होकर निर्दोष है स्वभाव जिसका ऐसे विद्याधरोंके स्वामी - कनकध्वजने भक्तिले विनयपूर्वकं उदार धर्मके धारक मुनिसे धर्मका स्वरूप पूछा ॥ ४५ ॥ राजाके पूछने पर वे मुनि दर्शनमोहनीय कर्मके वश हुए मिया दृष्टियों को भी हठात् आल्हादित करते हुए इस. तरहके विकार रहिन कल्याणकारी वचन बोले ॥ ४६ ॥ सम्पूर्ण ज्ञान- केवलज्ञानके धारक जिनेन्द्र देवने जो उत्कृष्ट धर्म बनाया है उसका मूल एक जीवदया है । यह प्रसिद्ध धर्म स्वर्ग और मक्षक महान् सुखका कारण है । इसके दो भेद हैं- सागारिक और अनागारिक | सागारिकको अणुव्रत कहते हैं और अनागारिक · ""
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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