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________________ भगवानका शुभागमन । (१४) भगवानका शुभागमन | " दिशः प्रसेदुर्मरुतो ववुः सुखाः प्रदक्षिणार्चिर्हविरग्निराददे । ६९ बभूव सर्व शुभशंसि तत्क्षणं भवो हि लोकाभ्युदयाय तादृशाम् ॥ 'दिशाएं निर्मल होगई । सुन्दर वायु बहने लगा | अग्नि दक्षिणाग्नि होकर हवि (हवनद्रव्य) ग्रहण करने लगी । उस समय सब बातें शुभकी सूचना देने लगी । बात यह है कि महा पुरुषोंका जन्म संसारके कल्याणके लिए हुवा करता है ।' उनकी जीती जागती मूर्ति उनके समयके मनुष्योंका साक्षात् उपकार करती है । पर उनके जीवनके अनुपम चरित्र उनके बाद आनेवाले मनुप्योंका परमोपकार किया करते हैं । वे ही हमारे नेत्रोके अगाड़ीसे अंधकारका परदा हटा देते हैं। आदर्शजीवनके लिए इन महात्माओंके जीवनके सुनहरे कृत्य ही सच्चे पथप्रदर्शक हैं । आदर्श और उच्च बननेके लिए इसके सिवाय सरल उपाय नहीं है । कैसा भी उपदेश इस साक्षात् आदर्शके अगाड़ी कुछ भी नही है । वस्तुत:-- 6 "हमें महत पुरुषों के जीवन, ये ही बात सिखाते हैं। जो करते हैं सतत परिश्रम, वे पवित्र बन जाते हैं।" अस्तु, स्वयं सर्वज्ञ भगवान अन्तिम तीर्थकर प्रभू महावीरका विशाल चरित्र क्यों न चित्तमें अपूर्व शान्ति और ज्ञानके उद्रेकको प्रकट करनेका कारण बनेगा ?
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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