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________________ ७० - भगवान महावीर। जब संसार ब्राह्मण लोगोंकी कार्रवाईसे उसी तरह दुःखित हो रहा था, जिस तरह गत शताब्दियोमें यूरोप रोमके पोपोंकी. पोपलीलासे दुःखी बन रहा था, तब क्षत्रिय कुलमें ऐसे अंधकारको मेटनेके लिए सूर्यका प्रन्ट होना, किसके चित्तको आनन्द देनेवाला नथा। होनहार विरवानके, होत चीकने पात' इसीलोकोक्तिके अनुसार भगवान महावीरका शुभागमन आषाढ़ शुक्लाषष्ठीके दिन जब कि चन्द्र उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रपर वृद्धियुक्त विराजमान था, पुष्पोत्तर विमानसे उतरकर महाराज सिद्धार्थकी रानी त्रिशलादेवीके गर्भ में हुआ, इसके पहिले हीसे महाराज सिद्धार्थकी राजधानी कुण्डलपुरमें अतुल धन ऋद्धि आदिकी वृद्धि होने लगी थी। चहुंओर सुखसम्पन्नता फैल रही थी, यह हम पहिले देख चुके हैं । जैन शास्त्रोंके अनुसार स्वर्गके देवेन्द्रने कुबेरको पन्द्रह महीने पहिलेसे रत्नोंकी वर्षा करनेके लिए कुण्डलपुरमें भेज दिया था। तात्पर्य यह है कि भगवानके आगमनके साथ ही साथ कुण्डलपुरकी भाग्यशाली जनताके भी दिन फिर गए थे। पहिले तो उन्हें ऐहिक सुखसम्पत्तिकी प्राप्ति हुई और जब प्रमू महावीरने धर्मका उद्योतन किया तब उनको आम्यंतरिक आत्मसम्पदाकी वृद्धि हुई थी। . इसीसे प्रभू वर्तमानके नामसे मी विख्यात हैं। भगवान अपनी माताके गर्भ चन्द्रकी भांति दिन प्रतिदिन बढ़ रहे थे। महारानी त्रिशला वैशालीक मुख्य नृपति चेटकी ज्येष्टा पुत्री थी। इनका दूसरा नाम प्रियकारिणी था। यह महिला समानकी अद्वितीयरल थीं। नन्दाता भी अपूर्व थीस्वियं इन्द्रने इनके दर्जनमें अपनको रताय माना था। दया, मील मनि
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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