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________________ AMAARANA १९२ . . भगवान महावीर। '.. भगवान के निर्वाणोपलक्षके शुभ स्मारकमें प्रचलित भारत के सर्वोपरि जातीय त्यौहारकी असलियत लोगोंने किस तरह . भुलादी है, उससे भारतवासियोंके आत्मगौरव विस्मृतिका पता हृदयको विह्वल करदेता है। कितने पवित्र उच्च आदर्शक स्मारकमें हर्ष मनाना-दीपक जलाना; और कहां उसी समय आसुरी प्रवृत्तियों (धूतरमण आदि)में प्रवृत्त हो जाना ! भारतवासियो ! अपनेको पहिचानों! अपने आदर्श भगवान महावीरके चारित्रका अनुकरण करो; निसका कि उत्कट प्रभाव आपके पूर्वजों पर इस प्रकार पड़ा था कि उन्होने भगवानकी पवित्र स्मृतिमें एक जातीय त्योहार नियत किया था। .: ' जिन विज्ञ पाठकोंने भगवानकी निर्वाणप्राप्तिके शुभस्थानके दर्शन करनेका सौभाग्य नही पाया है, उनके लिए मि० जुगमन्दरलाल जैनी० एम० ए० वैरिष्टरादिका निम्नवर्णन पावापुरीका परोक्ष दर्शन करादेगा। आप लिखते हैं कि " सीमित फैलावका छोटासा ग्राम, अधिकांशमें मिट्टीके गृहोंसे पूर्ण पावापुरी अपने साधारण रूपमे प्यारी जगह तो है ही, परंतु धार्मिक संबंध होने के कारण वह और भी प्यारी है। जैन यात्रियोंके लिए वहां कई धर्मशालाएं हैं। दिगम्बर और श्वेताम्बरियों द्वारा निर्मित करीब ५-६ मंदिर हैं। पुरुष और महिला समाजके बहुतसे यात्री वहां जाते हैं, परन्तु खासकर दिवालीके दिन उनकी संख्या अधिक होती है। इसी पवित्र दिन भगवानने मोक्ष प्राप्त की थी। और इसके पश्चात मार्च मास तक यही दशा रहती है। उपरान्तमें यात्री घट जाते है। मुख्य मंदिर जिसमे भगवान महावीरके पवित्र चरण-चिह्न
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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