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________________ भगवानका मोक्षलाम। . १२३ विराजमान हैं, कमलपत्रों और अन्य प्रकारकी जलजलता-बलरियोंसे अलंकृत एक तालावके मध्य अवस्थित है। पानीके मध्य अनेक मछलियां तैरती नजर आती हैं; और उनका रतिपूर्ण तैरना मनोरंजनका एक सलौना दृश्य है । कभी २ एक बड़ी मछली छोटी मछलियोके गिरोहपर झपटकर उन्हें तितर वितर करके पानीमें भीतर दौड़नानेके लिए बाध्य करती है। इस समय तालाबमें कमल नहीं खिल रहे थे, परन्तु यह अनुमान करना कठिन नहीं है कि कैसा न चिताकर्षक दृश्य तलावका होजाता होगा जब श्वेत और रक्तवर्णके कमलदल उसकी सतहको अलंकृतकर देते होंगे, एवं उसकी स्वच्छ तलीमे मछलिया कमलोंकी जड़ोंके तन्तुओंमें किल्लोलें करती तैरती दिखाई पड़ती होंगी। सूर्य भी उस समय उस जलबिन्दुको जो मछलियोके किडोलमय नृत्यसे कमलदलपरआन पड़ाहो, अति मनोहर गुलावी वर्णक मोतीमें परिवर्तित करता नजर आता होगा। हमारे भगवानके पवित्र मंदिर तक पत्थरका पुल बन्धा हुआ है, जिसके द्वारा वहां पहुंचा जाता है। इस मंदिरमें एक छोटी कोठरी है, जिसमें पूर्वकी ओर मुख किए तीन ताक है। इन ताकोंके मध्यवाले ताकमें हमारे अंतिम भगवानके पवित्र चरण-चिन्ह अंकित हैं। इस ताकके सीधे हाथवाले ताकमें भगवानके गणधर इन्द्रभूति गौतमकी और उसके दाई ओर दूसरे गणधर सुधर्माचार्यकी चरणपादुकाएं प्रतिष्ठित हैं। यह दोनों ही महात्मा भगवान महावीरके जीवनकालमें हुए थे। और भगवानके निर्वाणकालके १२ वर्ष उपरान्त पावासे ही मोक्षको प्राप्त हुए थे। इन पवित्र चरणचिन्होंके दर्शन करनेरो नित शांति और शुद्धिका आनन्द मिलता है
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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