SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 214
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवानका मोक्षलाभ। १९१ पौद्गलिक:प्रकाश अपना विकास दिखा रहा है । " यह दीपावली (दिवाली) का उत्सव आजसे करीब साढ़े चौवीस सौ वर्ष पहिले - ईसासे पूर्व संवत् १२७ में भारतवासियों द्वारा परम हर्ष और आनन्दसे मनाया गया था, जो आजतक अपने उसी रूपमें प्रचलित है, यद्यपि उसकी असलियत भुला दी गई है । हरिवंशपुराणके निम्न श्लोक इसी बात बातको अच्छी तरह प्रगट कर देते हैं, अर्थात: ज्वलत्प्रदीपालिकया प्रवृद्धया, - सुरासुरैदीपितया प्रदीप्तया । तदास्म पावानगरी समंततः, प्रदीपिताकाशतला प्रकाशते ॥ १९ ॥ ३३ ॥ ततश्च लोकः प्रतिवर्षमादरा प्रसिद्ध दीपालिकयात्र भारते । समुद्यतः पूजयितुं जिनेश्वरं, जिनेन्द्रनिर्वाणविभूति भक्तिभाक् ॥ २१ ॥ ६६ ॥ " अर्थात् - उस समय भगवान महावीरके निर्वाण कल्याणके उत्सवके समय सुर असुरोंने महादेदीप्यमान जहां तहां दीपक जलाये - रोशनी की जिससे कि पावानगरी अति सुहावनी जान पड़ने लगी और दीपकोके प्रकाशसे समस्त आकाश जगमगा उठा ||१९|| भगवानके निर्वाण दिनसे लेकर आज तक भी जिनेन्द्र महावीरके निर्वाण कल्याणकी भक्ति से प्रेरित हो लोग प्रतिवर्ष भरतक्षेत्र में दिवाली के दिन दीपोकी पंक्तिले उनका पूजन स्मरण करते हैं ॥ २१ ॥
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy