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________________ १९० , ' 'भगवान महावीर। mmimmmmmmmmmmmmmmmmmmmm '.'. . भगवानका निर्वाण सर्वक प्रगटरूपमें हुआ था। कहा जाता है कि जिस समय आपकी परमोत्कृष्ट आत्मा अवशेष अघातिया कर्मोका नाश करके लोकशिखिरपर स्थित सिद्ध शिलाकी ओर जा रही थी, उस समय कृष्णपक्षकी रात्रिका अन्धकार होते हुए भी एक अपूर्व दैदीप्यमान प्रकाश चहुंओर फैल गया था, समस्त लोकमें एक अद्भुत चमत्कार दृष्टिगोचर होने लगा था, जिससे उर्व, मध्य एवं पाताल लोकके प्राणियोंको भगवानकी निर्वाण प्राप्तिका शुभ समाचार ज्ञात हो गया था, जैसे कि महावीरचरित्रके उक्त कथनसे व्यक्त है। समुद्रने भी अपूर्व गर्जन प्रारम्भ कर दी थी। एथ्वी जरा कम्पित हो गई थी। देवलोकके देवमासादोंमें घंटे आदि स्वयं बजने लगे थे। देवोंने आकर भगवानकी पूजा करके उनके शरीरकी अन्त्य क्रिया की थी, और फिर वे अपनेर स्थानको वापस गए.। श्वेताम्बर आन्नायके अन्योसे प्रकट है कि, 'निस पवित्र स्थानसे भगवान महावीरको मोक्षलाम हुआ था, वहांपर एक स्तूप इस पवित्र दिनकी स्मृतिके स्मारकरूपमें निर्मित कर दिया गया था। भगवानकी निर्वाणप्राप्तिके उपलक्षमें उत्तरीय भारतके काशी, कौशलके १८ राजागणोने और मछगणतंत्र संघके ९ राजाओंने और लिच्छावि संघके ९ राजाओंने मिलकर उस दिन दीपक जलाए थे और हर्ष मनाया था। पावापुरीमें भी राजा हस्तिपालने दीपावली उत्सव किया था। प्रत्येक गृहप्रासाद तडाग आदि दीपकोंक प्रकाशसे खूव चमचमाते नजर आरहे थे। मानो यही व्यक्त कर रहे थे कि "यथार्थ ज्ञानका प्रकाश तो अब संसारमें नहीं है परन्तु
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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