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________________ भगवानका मोक्षलाभ। १८९ भावार्थ-विरोधी पशुओने एक दूसरेसे मैत्री कर ली थी, जिससे प्रगट होता था कि भगवानका दिव्य प्रभाव मनुष्य, पक्षी और पशुओंमें पूरा पुरा असर करगया है। ___ 'भगवानकी आत्मिक दिव्य ज्योतिके प्रभावसे प्रकृति भी स्वयं उल्लसित हो गई थी। आकाश निर्मल होगया था। पृथ्वीने हरी २ घास और रंगविरंगे फूलोको धारण करके मानों भगवानके चरणोंकी पूजा की थी। चहुंओर सुवासित धीमी २ पवन चलने लगी थी । वह स्थान "जय जय की ध्वनिसे गुंजायमान होगया था और समस्त प्राणी हर्षमें मग्न होगए थे । संक्षेपमें सुन्दर वनोपवन और आनन्दसे विह्वल मनुष्योंसे वेष्टित पावापुरी साक्षात् खर्गका मान देने लगी थी।' ( Ibid) ___ समवशरणके विघटित हो जानेपर दिव्य एवं अनुपम समयमें "निर्मल परमावगाढ़ सम्यक्त्वका धारक वह सन्मति भगवान जिनेन्द्र षष्टोपवासको धारणकर योगनिरोधकर कायोत्सर्गके द्वारा स्थित होकर समस्त कर्मोको निर्मूलकर कार्तिक कृष्णा चतुर्दशीकी रात्रिके अंतसमयमें जब कि चन्द्र खातिनक्षत्र पर था, प्रसिद्ध है श्री जिसकी ऐसी सिद्धि (मुक्ति) को प्राप्त हुआ उस जिनेन्द्रके अव्यावाध अतिशय अनंत सुखरूप पद-स्थानको प्राप्त करते ही, सिहासनोके कंपनेसे जानकर-भगवानका मोक्षकल्याणक हुआ है ऐसा समझकर अपनी अपनी सैन्यके साथ शीघ्र ही अनुगमन करनेवाले सारे देव और उनके अधिपति भगवानके पवित्र और अनुपन शरीरकी भक्तिपूर्वक पूजा करनेके लिए उस स्थानपर जा पहुंचे।" ( अशक अधिकृत महावीरचरित पृष्ट २५६)
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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