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________________ महिलारत चन्दना। इस प्रकार भेगवान महावीर स्वामीका चतुनिकायक संघ था जो अभी तक अपने प्रत्यक्षरूपमें जैन नातिके भीतर विद्यमान है। और इस संघके चारित्र नियमकी उचित व्यवस्था भी एक कारण थी जिससे जैनधर्म हिन्दू बौडादिकोंसे भारी वेदना सहकर आन भी भारतवर्षमें मौजूद हैं, यद्यपि इसका मुख्य कारण इसके सिद्धान्तोंका वैज्ञानिक सत्य होना ही है। avart (२३) महिलारत्न चन्दना। " सोचो, नरोसे नारियां, किस बातमें हैं कम हुई ? मध्यस्थ वे शास्त्रार्थमें हैं, भारतीके सम हुई ? क्या कर नहीं सकतीं भला यदिशिक्षिता होनारियाँ ? रणरङ्ग, राज्य, सुधर्मरक्षा, कर चुकी सुकुमारियाँ !" भारतीय महिला-संसारका पूर्व इतिहास अपनी अपूर्व छटामें एक ही है। जब कभी उस अपूर्वताका एकाध चमकता हुआ रत्न नेत्रोके सामने आनाता है, तब हमारा हृदय उसी समानकी वर्तमान दशाका अवलोकनकर द्रवीभूत होनाता है । इस पवित्र समाजकी भगवान महावीरस्वामीके समयमें क्या दशा धी? यह इसीसे व्यक होसका है कि वह कितनी उत्कृष्ट न होगी कि जिसमें से ३६००० महिलाएं सांसारिक विषयसुख और अपने
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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