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________________ १२० . भगवान महावीर। हुए । इसी समय ग्रन्थ लिपिबद्ध किए गए थे। अबतक वे स्मृति द्वारा कण्ठस्थ याद रखे जाया करते थे ! पश्चातमें सर्वसे प्रसर आचार्य कुन्दकुन्दका पता हमको चलता है और उमास्वामि, समन्तभद्राचार्य प्रभूत आचार्य होते रहे थे।, वर्तमानमें भी इस मुनिगणके कठिन मार्गका अभ्यास करनेवाले साधारण मुनिगण विद्यमान हैं। इस प्रकार भगवानके संघका यह अंग. अब तक जीवित है। __ मुनियोंके पश्चात् संघके दूसरे अंगमें आर्यिकायोकी गणना थी। यह आर्यिकाऐं भगवानके समयमें छत्तीस हनार थीं। यह सब भारतीय महिलाएं थीं जिन्हें अपनी आत्माका ज्ञान होगया था - और जिसके कारण ही उन्होंने मुनियों जैसे कठिन व्रत, संयम और आत्मसमाधिकी शरण ली थी। वे सांसारिक प्रलोभनों एवं संसर्गासे नितान्त बिलग रहती थीं। इन आर्यिकायोंकी नायिका चेटकरानाकी लघु पुत्री चन्दना थीं। भगवानके संघके इस अंगका वर्तमान में अमावसा ही है, यद्यपि श्वेताम्बरानायमें अब भी बहुतसी आर्यिकाएं मिलती हैं किन्तु इन आर्यिकायोके चारित्र नियम भगवानके समयकी आर्यिकायो जैसे उत्सष्ट नहीं है। भगवानके संघके तीसरे अंगमें एक लाख श्रावक थे जिनमें मुख्य साखस्तक थे। संभवतः यह व्रती श्रावक थे अथवा उदासीन । आवक थे। इनके अतिरिक्त अन्तिम अङ्गमें तीन लाख श्राविकाएं थीं जिनमें मुख्य मुल्सा और रेवती थीं। इनके अलावा एक बड़ी संख्या बहुतसे गृहस्थ और देव भगवानके भक्त थे।
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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