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________________ ग हावार। प्रिय आभूषणों एवं गार्हस्थिक बन्धनोंको तोड़कर आत्ममयममें लीन होगई थीं। उनका- ज्ञान, उनका चारित्र कितना बड़ा, चढ़ा न होगा! श्रीमती महिलारत्न चन्दनादेवी इन्ही आयिकायोकी नायिका थी। वे वैशालीके अधिपति चेटक्की सर्व लघुपुत्री थी और सर्वगुणसम्पन्न, परमसुंदरी थीं। एक दिन वे वागमे वायु सेवनकर रही थी । वहांसे एक विद्याधर विमानमें बैठा निकला। उसने चंदनाकी रूपराशिपर अपने नेत्रोको उलझा उनपर आसक होगया और उनको उठाकर अपने विमानमें बैठाकर ले गया, परन्तु अपनी गृहिणीके भयसे उसले उन्हें मार्गमें ही एक अनमें छोड़ दिया। वेचारी शोकसागरमे व्याकुल हो वहांपर अश्रुधाराएं वहारही थीं कि इतनेमे एक भील आया और उन्हें कौनाम्चीले जाकर एक वृपमसेन नामक धनिक वणिकके यहां बेच दिया। धनिक सेठने उन्हें अपने घरमे रखलिया, पर कुछ दिनों उपरान्न जाप पूण यौवनावस्थाको प्राप्त होगई जिससे सेठको स्त्री सुभद्रा उनसे रूपरागिके कारण ईप्या करने लगी। वह चन्दनाको हरतरहके दुःख लगी. नराव भोजन देने लगी, फटे कपड़े पहिननेको देने लगी, फनी २ ताड़नाको नी कानमें लाने लगी : पूर्व दुष्कर्मक फलस्वरूप चन्दना यह यातनाएं गान्तिपूर्वक महन सकी थीं। सतोपका परिणाम भी मिट होना है। चन्दना शुभ सत्यक पुण्योदयसे एक दिवस सापान ननावीर म्यानी रिने । उफर नगरको आहारदान दिया था, यह हम पहिलेदय अप है। इस गटार
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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