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________________ www भगवान महावीर । . यह इस प्रकार हुआ कि एक दिन ऋजुकूला नदीके किनारे पर बसे हुए श्री जम्मक नामके ग्राममें पहुंचकर अपराह्न समयमें अच्छी तरहसे षष्ठोपवासको धारणकर सालवृक्षके नीचे एक चट्टानपर अच्छी तरह बैठकर जिननाथने वैशाख शुक्ला दशमीको जब कि चंद्र, सूर्यके ऊपर था ध्यानरूपी खड्गके द्वारा सत्तामें बैठे हुए थाति कर्मोकी नष्ट कर केवलज्ञानको प्राप्त किया। अपनी केवलज्ञान संपत्तिके द्वारा सदा यथास्थित समस्त लोक और अलोकको युगपत् प्रकाशित करते हुए, इन्द्रियोंकी अपेक्षासे रहित, अच्छाया (शरीरकी छायाका न पड़ना) इत्यादिक दशगुणोसे युक्त जिनेश्वरकी त्रिदशेश्वरोंने आकर भक्तिपूर्वक नमस्कार किया। (देखो महावीरचरित्र प्रष्ट २९९-२६०) पूर्वोल्लिखित हिन्दी उत्तरपुराणमें भी इसीप्रकार वर्णन है यथाः- . "द्वादश वर्ष तपस्यामांहि । पूरण जिन कीन्हें मन लाहि ॥ जंमक नाम ग्राम इक जान | ताढिग सरिता एक प्रमान ॥ ऋजुकूला नामासो कही । तातट आरण्य मनोहर सही ॥ 'तामें रतनशिला इक सार । तापर प्रतिमा जोग सुधार ॥ साल वृक्षके तल जिनराज | वेलो धरलीनो जिनराज ॥ सुदी वैशाख दसै अब जान | और समय उत्तम अपराह्न ॥ तप केसार निवतर माहि । विपकश्रेणि आरूढ़ कराहि ॥ शुकल ध्यान घ्यायो सुधभाय । घातिकर्म दुखदाय खिपाय ।।" • जब भगवानको केवलज्ञान प्राप्त होगया और आप सर्वहितैषी, सर्वज्ञ निनराजपदको (अर्हत-तीर्थकर) प्राप्त होगए, तब देवोने उत्सव मनाकर आपके समवशरण (सभागृह)की रचना करदी थी।
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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