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________________ तपश्चरण और केवलज्ञानोत्पत्ति। १५ इस विषयका वर्णन हम तीर्थकर कौन हैं ?' इस प्रकरणमें कर चुके हैं। उसी प्रकार इन अन्तिम तीर्थकर भगवानके मी सर्व रचना क्रमसे होगई थी। और अब भगवानका शरीर भी वैसा ही दिव्यरूपका होगया था, जैसा कि प्रत्येक तीर्थकरका होता है। निसका वर्णन हम पहिले कर चुके हैं। इस समयसे भगवानकी वाणी खिरना (उपदेश होना) प्रारंभ होगई थी और आपके मुख्य गणघर इन्द्रमूति गौतम उस उपदेशको ग्रहण करते थे। इन गणधरका वर्णन हम अगाड़ी चलकर करेंगे। भगवानने समवशरणमें विराजमान हो पुनः भारतवर्ष में , विहार किया था। इस विहार और धर्मप्रचारका वर्णन करनेके पहिले हम श्वेताम्बर ग्रन्थोंकी उन कथाओंको भी दिए देते हैं जो भगवानके केवलज्ञानोत्पत्तिके पहिले उपसर्गरूपमें वर्णित हैं; यद्यपि दिगम्बर शास्त्रों में उनके विषयमें उल्लेख नहीं है। इन कथाओंसे भगवानकी मुनि अवस्थामें चारित्रकी दृढ़ताका भान होनाता है, और इसी भावसे उनका मूल्य और महत्व है।
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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