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________________ तपश्चरण और केवलज्ञानोत्पत्ति। ९९ कहेंगे । यहाँसे भगवान पुनः बनको प्रस्थान कर गए थे और वहांपर उपवास व ध्यान करने लगे थे। अब आपने बारह वर्षके लिए निश्चल मौनवृत धारण करके कठिन तपस्याका अभ्यास किया था। . इस बारह वर्षके तपश्चरणके पश्चात् आपको केवलज्ञानकी प्राप्ति हुई थी। श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों ही अन्य इस समय भगवानकी अवस्था ब्यालीस वर्षकी होचुकी थी ऐसा व्यक्त करते हैं और दोनों ही भगवानके केवलज्ञान प्राप्तिका स्थान भी एक ही बतलाते हैं। . " श्वेताम्बर ग्रन्थोंमें जो भ्रमणके स्थानों में मतभेद है, वह संभव है, वैसे नगर होंगे जिनका उल्लेख दिगम्बर शास्त्रोंमें नहीं दिया हुआ है। केवल यह ही लिख दिया गया है कि भगवानने विविध स्थानोंमें भ्रमण किया था। दिगम्बरशास्त्रोंमें केवल उन्हीं स्थानोंका नाम दिया है, जहांपर कोई विशेष बात हुई थी और श्वेताम्बरोंके कल्पसूत्र में . भगवानके चातुर्मासोंक हिसाबसे भ्रमणके ग्रामोंका उल्लेख किया है अर्थात् कल्पसूत्रके अनुसार भगवानने प्रथम चातुर्मास अस्थिकग्राममें किया था। और तीन चतुर्मास चम्पा और एष्टिचम्पामें किए थे और अवशेषमें आठ वैशाली और वणिनग्राममें किए थे। और उनके आचारंग सूत्रमें लिखा है कि आप सर्व प्रथम कुमारग्राममें पहुंचे थे। इस प्रकार दोनों ही संप्रदायोके शास्त्रोंसे विदित होता है कि बारह वर्षका तपश्चरण करनेके पहिले आपने भारतवर्षके विविधस्थानों में भ्रमणकर लिया था और इसके उपरान्त केवलज्ञानको प्राप्त किया था।
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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