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________________ पूर्वभव-दिग्दर्शन। उठाता चक्कर लगाता फिरता है। भगवान महावीरका जीव भी इसी क्रमसे चक्कर लगा रहा था। उन्होंने अपने पहिलेके जन्मोंमें निम्नलिखित शुभ गुणोंमें अपनेको पूर्ण करनेके कारण तीर्थङ्कर जैसे उच्चपदको पाया था: (१)'पुरा पूरा सच्चा श्रद्धान (सम्यकदर्शन) । (२) सम्यक्दर्शन, सम्यक्ज्ञान और सम्यक्चारित्रमय रत्नत्रय मागकी एवं उसके अनुयायियोंकी भक्ति विनय । (३) व्रतोंका पालन । (४) स्वाध्यायः । (६) धर्मसे प्रेम और दुनियासे वैराग्य (६) त्याग अथवा सांसारिक वस्तुओंसे ग्लानि । (७) संयम (८) साधु समाधि (अपनी आत्माका ध्यान) (९) सर्व प्राणियोंकी सेवा, खासकर साधुओं और सम्यक्ती नीवोंकी । (१०) तीर्थङ्करकी उसको आदर्श मानकर मक्ति । (११) आचार्यो (साधुओंके पर्थप्रदर्शकों) की विनय (१२) उपाध्यायोंकी विनय (१३) शास्त्रकी भक्ति (१४) शास्त्रों में निर्धारित नियमोंका पालन (१९) धर्मका प्रचार करना और स्वयं उस पर अमल करना (१६) और सत्यमार्ग पर चलनेवालोंके साथ वैसा ही प्रेम रखना जैसा गायंका अपनेबछड़े साथ होता है। भगवानने इन शुभ गुणोंमें उत्कृष्टता बहुतले जन्म धारण करके पाई थी। इनमेंसे आपके जन्मोंका वर्णन भगवान ऋषभनाथसे पहिले तकसे मिलता है। मनुष्य जब सर्वज्ञताको प्राप्त होजाता है तब उसे भूत भविष्य वर्तमान तीनों कालकी वस्तुओंका हालं युगपत माझ्म होने लगता है। भगवान महावीरके मुख्य शिष्य गणधर इन्द्रमूति गौतम सज्ञ थे। उन्होंने ही भगवानके
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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