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________________ भगवान महावीर। संसारके हता, नवीन कमल समान हैं सुकुमार चरणयुगल जिनके ऐसे कुमार भगवानने देवोपनीत मोगोंको भोगते हुए तीस वर्ष विता दिए। " ( महावीरचरित्र ४० २५६) ___भगवान बालब्रह्मचारी रहे थे। और जैसा हम देख आए हैं, आप वाल्यकालसे ही धार्मिकशील व्यक्ति थे और वैराग्यमावके मुग्ध भ्रमर थे। भगवानके इस अपूर्व कालका उपर्युक्त वर्णन उनके पूर्वजन्मोंमें स्त शुम लत्यों को देखनेकी लालसा उत्पन्न करदेता है। अस्तु, साधारणतया उनके पूर्व जन्मोका दिग्दर्शन भी हम यहां किए लेते हैं। (१६) पूर्वमक-दिग्दर्शन। "काल अनन्त भ्रम्यो जगमें सहिए दुःख भारी। जन्म मरण मित किए पापको हो अधिकारी ॥" - सामायिक पाठ। जीव अनन्तकालसे संसारमें कमौके वश होकर चक्कर लगा रहा है । कमी शुभ कमौके करनेसे मनुष्य देवादि जन्मोंक सुख मोगने लगता है और वहांपर भेद विज्ञानको पाकर उत्तरोत्तर उतति करता हुआ मोक्षधाममें अनन्त सुखका भोला मन जाता है। यदि विदेक और संयमकी उपेक्षा करके वह जीव ननुयादि उच्च स्याओने विषयातक हो नानाप्रकारके सांसारिक मंचोमें पंज जाल है तो उसी क्रमसे संसारमें नीच दशालोम पई दुःख
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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