SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवान महावीर। जीवनवृतान्त वर्णन और उपदेशको लोगोंको समझाया था। जिनमें मुख्य श्रोता राजा श्रेणिक विम्बसार थे। जैनशास्त्रोंमे भगवान महावीरका जीव पहिले पहिल एक मनुष्य दर्शाया गया है, यद्यपि इसके पहिले भी उनके और भव हुए होंगे, क्योकि जीव अनादिसे संसार-सागरमें गोते लगा रहा है। जम्बूद्वीपके मध्य मधुवनके भीतर उनका जीव पुरुरवा नामक भील था! सागरसेन मुनिने उसे धर्मका स्वरूप समझाया था जिससे उसने अहिसादिक व्रतोंकी बहुत दिनों तक पालना की; जिसके प्रभावसे वह मरकर सौधर्म खर्गमें देव हुआ था। वहाँकै भोग भोगकर यह देव ऋषभदेवके पुत्र भरत चक्रवर्तिका पुत्र मरीचि हुआ था। और हम देख चुके हैं कि इसने ऋषभदेवके साथ ही साथ दिगम्बरीय दीक्षा ली थी, परन्तु कठिन परीषहोंको न सह सकनेके कारण उससे विमुख हो अपने मनोनुकूल सांख्यसहशमतका अवलम्बन करने लगा था। इस कायझेशके वलसे वह पांचवें स्वर्गमें कुटिल परिणामी देव हुआ था। ___वहांसे चयकर यह जीव कौलीयक नगरके कौशिक ब्राह्मणके यहां प्रिय पुत्र हुआ था। यहां भी इसने मिथ्यातत्वोंका उपदेश दिया था और कायक्लेश किया था, जिसके कारण यह मरकर प्रथम खर्गमें देव हुआ। वहां विषयभोगोमें लिप्त रहा और शोकसे मरकर स्यूणागर नामक नगरमें भारद्वाज द्विजके यहां पुप्पमित्र नामक पुत्र हुआ। पुप्पमित्रने वाल्यकालसे हठयोगका अवलम्बन किया जिससे वह देहत्यागकर पुनः स्वर्गमें देव हुआ। श्वेतिविका नामकी नगरीने अग्निहोत्री वाहण जन्निमूतिकी
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy