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________________ भगवानका शुभागमन । ७५ तीर्थकर भगवान महावीरका जन्म हुआ था । जैन शास्त्रोंमें इन दोनों शुभ अवसरोंको गर्भ और जन्मकल्याणक के नामसे उल्लेख किया है । और देवोंका आगमन और महोत्सव मनाना जतलाया गया है । भगवान महावीरके जन्म विषयमें कहा है कि सौधर्म इन्द्र प्रभूको रत्नमई पाण्डुकशिला पर लेजाकर क्षीरोदधि समुद्रके निर्मल जलसे अभिषेक किया था । श्री हरिवंशपुराण में इस विषय में लिखा है कि " वहां (मेरु पर्वत) पर अतिशय मनोहर एक पांडुक वन है। पांडुकवनमें अतिशय विस्तीर्ण पांडुक शला है । उस पर एक रत्नमई सिंहासन है । इंद्रने भगवानको लेजाकर उस सिंहासनपर विराजमान किया। देवगण क्षीरसागरसे अनेक सुवर्णमई घड़े भरलाए | इंद्रने समस्त देवोंके साथ उस समय भगवानका जन्माभिषेक किया, अनेक प्रकारके वस्त्र और अलंकार पहनाए, सुगंधित माला पहिनाई । " श्री महावीरचरित्र में भी यह वर्णन इसप्रकार है (पृष्ट २५३ ) कि “अभिषेक विशाल था ...नम्रीभूत सुरेन्द्रने 'वीर' यह नाम रखकर उनके आगे अप्सराओके साथ अपने और देव असुरोंके नेत्र युगलको सफल करते हुए हावभावके साथ ऐसा नृत्य किया जिसमें साक्षात् समस्त रस प्रकाशित होगए । विविध लक्षणोसे लाक्षेत - चिन्हित है अंग जिनका तथा जो निर्मल तीनज्ञानोंसे विराजमान हैं, ऐसे अत्यद्भुत श्री वीरभगवानको बाल्योचित मणिमय भूषणोसे विभूषित कर देवगण इष्टसिडिके लिए भक्तिसे उनकी इसप्रकार स्तुति करने लगे । 'हे वीर ! यदि संसार में आपके रुचिर बचन न हो तो भव्यात्माओंको निश्चयसे तत्त्ववोध किस तरह हो
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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