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________________ भगवान महावीर। पूर्ण ज्ञानका धारक होगा । (१२) सिहासन देखनेका फल यह होगा कि वह अन्तमें उत्कृष्ट पदको प्राप्त करेगा । (१३) विमान देखनेका फल यह है कि वह स्वर्गसे उतरकर आवेगा। (१४) नागभवन देखनेसे अभिप्राय यह है कि वह यहांपर मुख्य तीर्थको प्रवृत्त करेगा। (१५) रत्नराशिका देखना यह सूचित करता है कि वह अनंतगुणोका धारक होगा । (१६) निघूम अग्निका देखना बताता है कि वह समस्त कर्माका क्षय करेगा। इस तरह प्रियतमसे स्वमावलीका यह फल सुनकर कि वह फल निनपतिके अवतारको सूचित करता है प्रियकारिणी-त्रिशलादेवी परम प्रसन्न हुई। ___"कुछ दिनोंके पश्चात् उच्च स्थानपर प्राप्त समस्त ग्रहोंके लनको योग्यसमयमें रानीने चैत्र शुक्ला त्रयोदशी सोमवारको रात्रिके अन्त समयमें जब चन्द्रमा उत्तरा फाल्गुनि पर था, जिनेन्द्र भगवान महावीरका प्रसव किया। प्राणियोंके हृदयोके साथ २ समस्त दिशाएं प्रसन्न होगई । आकाशने विना धुले ही निर्मलता धारण करली । उस समय देवोंकी की हुई मत्त भ्रमरोसे व्याप्त पुप्पोंकी वर्षा हुई । और दुंदुमियोने आकाशमें गम्भीर शब्द किया।" (देखो महावीरचरित्र एष्ट २४८ ।। ___ इस समय चौथे काल दुःखमासुखमामें ७४ वर्ष भामास और अवशेष रह गये थे। प्रभूका जन्माभिषेक स्वर्गके देवेन्द्रोंने आकर मनाया था। स्वयं नृप सिद्धार्थने अपने महलमें दश दिन तक. उत्सव मनाए थे। दीपक जलाए थे। दान पुण्य आदि शुम कुन्य. कराए थे। और वन्धीजनोंक बंधन खुलवाए थे। चहुंओर तुख शांतिसे मनुष्य आनन्दित होगए थे। ऐसी शुभ दशा अन्तिमः
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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