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________________ (५१) सार संग्रह पुस्तकमाला) में सत्य मूर्ति श्री हरिश्चन्द्र-तारा के चरित्र मे हरिश्चन्द्र को सूर्यवशीय माना है। सूर्य देवता होना विश्व विदित है। उनका जो वंश चला तो देवताओ के सन्तान होना भी मानना पड़ेगा। फिर लिखा है कि देवताओ के स्त्रीये अप्सराएँ होती हैं। इसके सिवाय आप महाशयो को पूर्ण प्रकार से विदित है कि चौबीस ही तीथकगे का जीव देव-लोक से चव्य होकर मनुज सन्तति मे जन्म लिया है और यहाँ पर उनसे सन्तति होना सर्वोपरि मान्य है। फिर देखियेगा कि रन-चूद. विद्याधरी का राजा, विद्याधर वशी देवता थे। उनके माता पिता और पुत्र कनक-चूड होने का शास्त्रो में वर्णन है। विद्याधर वंश को देवयोनी मे होने का प्रमाण मे अमर-कोप के पहले काण्ड का ११ वॉश्लोक देता हूँ। विद्याधराप्मरो यक्ष रक्षो गन्धर्व किन्नराः । पिशाचो गुह्य को सिद्धो भूतौमिदेवयोनयः ॥ इसके सिवाय देवता वैक्रेय रूप भी धारण करते हैं, जैसा कि इन्द्र ने भगवान के जन्म स्नात्र के समय परं ५ रूप धारण किये व इन रत्नं प्रभव-सूरिजी ने भी औश्या व कोस्ट नगर के मन्दिर में प्रतिष्ठा समय दो रूप धारण किए देखो औश्या चरित्र व जन्म कल्याण । दूमरा वैदिक मतानुसार प्रमाण, रामायण मे, मनुराजा ओर शतरूपा रानी ने तप किया उससे प्रसन्न होकर साक्षात् परब्रह्म परमात्मा अपने स्वरूप का
SR No.010402
Book TitleMahatma Pad Vachi Jain Bramhano ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaktavarlal Mahatma
PublisherVaktavarlal Mahatma
Publication Year1945
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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