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________________ (५०) के पाठितों को यह आश्चर्य युक्त बात मालुम होकर शंका पैदा करेंगे कि देवताओं का पृथ्वी पर आना व उनसे मनुज सन्तति होना असम्भव हैं क्योंकि देवता निवार्य होते हैं । इस शंका के निवाथे जैन मत के शाबों का प्रमाणा देता हूँ। कथानुयोग के आधार पर कलि काल सवज्ञ श्री मद् हेमचन्द्रा चार्य जी महाराज ने वि. स. ११२० मे त्रिष्टी शिला का पुरुषचरित्र रचा । उसके तृतीय सर्ग का दूसरा वर्ष जहाँ उर्ध्वलोक का वर्णन है, 'भुवनपति, व्यन्तर ज्योतिषी और ईशानदेव लोक सुधि के देवता अपने भुवन में रहे वा बलि देवियों के साथ विषय सम्बन्धी अङ्ग से वाहे, वे संकलिष्ट कर्म वाला और तीन अनुराग वाला होने से मनुष्यों की तरह काम भोग मे लीन होवे है, और देवागना के सर्व अङ्ग सम्बन्धी प्रीति को मेलवे है, इसके बाद दो देवलोक के देवता स्पर्ष मात्र से, दो देवलोक के देवतारूप देखने मे और दो देवलोक के देवता शब्द अवणथी और अनन्त बिगेरे चार देवं लोक के देवता मात्र बड़े चिन्तववा से विषय ने सेवन करे। इस प्रकार विषय रस में प्रविचार वाला देवताओं से अनन्त सुख वाला देवता ग्रेवेवकादिक मे है जो विषय सम्बन्धी प्रविचार रहित है" मैंने भी अपनो जाति उत्पत्ति उन्हीं त्राविशंक देवता जो भुवनपति, व्यन्तगदि भुवन में निवास करने वालो से ही होना लिखा है, फिर इसम शका जैसी कौनसी, बात है। इसके सिवाय बाइस, समुदाय के पुज्य जवाहिरलालजी ने व्याख्यान दिया, उसका सारं लेकर साहित्य प्रेस, अजमेर मे मुद्रित हुभा (व्याख्यान
SR No.010402
Book TitleMahatma Pad Vachi Jain Bramhano ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaktavarlal Mahatma
PublisherVaktavarlal Mahatma
Publication Year1945
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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