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________________ [५० ] पण थे तो निरपराधी ज छे. वली आपणा श्रगमां तथा श्रापणा पुत्र पुत्री, नानी गोत्री श्रादिकना मस्तकमां श्रथवा कानमां कीड़ा पड्या छे. अथवा आपणा जमोदामां के दांतमां के दाढमां के जडवामां कीडा पड्या छे, ते वारे तेमने मारवाना उपाये करीने कीडानी जग्या श्रोषध लगाडवुं पडे, पण से जीवो शो अपराध कर्यो छे ? ये तो पोतानी योनिउत्पत्तिस्थान पामीने कर्मने ग्राधीन श्रावीने श्रहीया ऊपजे छे- तो ये अपराधी नथी. ते कारण माटे निरपराधी जीवनी पण हिंसा, कारणे करीने श्रावकथी तजी जाय नहीं से मारे थढी विश्वा मांथी अधो गयो त्यारे सवा वशानी . दया रही. ग्रेटली सवा वशानी दया शुद्ध श्रावकने छे. अटले 'सजीव संकल्पने निरपराधने कारण विना हणु नहीं' ग्रेवी प्रतिज्ञा थई ये प्रतिज्ञा ज्यारे शुद्ध रहे त्यारे ते श्रावक व्रती कहवाय. ( श्री सम्यक्त्व मूल वार व्रतनी टीप २४-२६ ) शुद्ध श्रावकने पण मात्र सभा वश्यानी दया छे अ ऊपरथी साधु अने गृहस्थता नियमनमां केटलो फेर छे ते मालून पडी शके छे. खेती साधुने निषिद्ध होई शके परण गृहस्थनी मर्यादानी अंदर खेती यात्री जाय छे, अने तेनां प्रमाणो हवे तपासवानां रहे के. श्रावकोनां जीवन वर्णवतुं उपासकदशासूत्र तपासी उपलकदशामां आवतां कथानको वधां श्रेक चे श्रपवादवाद 1
SR No.010399
Book TitleKrushi Karm aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherShobhachad Bharilla
Publication Year
Total Pages103
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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