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________________ ' [ ४६] विश्वा गया अने दश रह्या. अटले अंक त्रस जीवनी दया राखवाना दश विश्वा रह्या तेना पण वली वे भेद छे. अक संकल्प अने बीजो प्रारंभ. तेमां प्रारंभ करीने जे त्रस जीवनी हिंसा थई जाय ते छोड़ी न जाय ते माटे बे विसामां अक संकल्प हिंसानो त्याग अने श्रारंभ हिंसानी तो जयणा छे, प्रेम गणता फरी दशमांथी अडधा गया अटले पांच विश्वा रह्या, अटले संकल्प करी त्रस जीव न हणु. अमां पण जीवना बे भेद छे. श्रेक सापराधी जीव अने वीजा निरपराधी जीव के. तेमां जे निरपराधी जीव छ तेमने न हणुअने सापराध जीव ने हणवानी तो जयणा छे. अथी करी सापराधीनी दया श्रावकथी सदा सर्व रीते पले नहीं ........................... श्रे माटे अपराधी नो संकल्प पण न छूटे. त्यारे बाकी रहेला पांच विश्वामांथी पण अडधा गया, बाकी अढी विश्वा रह्या, श्रेटले संकल्पीने “निरपराधी जीवने न मारु" अटलुज फकत रहयुं अमां पण वली बे मेद छे. अक सापेक्ष अने बीजा निरपेक्ष. तेमां सापेक्ष निरपराधी जीवनी दयाश्रावकथी पले नहीं, तेनं कारण शुं ते कहे छे. श्रावक पोते घोडा, गाडी, बलद, रथमां, गाडीमां के इत्यादि वीजाऊँट वाहनोपर बेसे छे. त्यारे घोडा प्रमुख बलद वगैरे ने चावका के पार लगावे छे. पण विचारतो नथी के चलदे शो अपराध कर्यो छे ओमनी पीठ उपर तो चढी बेठो छे. अ जीवना शरीर सामर्थ्यनी तो कई खबर छे नहीं, जे आ जीव वलवान छे के दुर्वल छे. पोते उपर वली चढी वेठो छ. ने तेने गाल प्रमुख दइ ने मारे छे !
SR No.010399
Book TitleKrushi Karm aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherShobhachad Bharilla
Publication Year
Total Pages103
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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