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________________ [४ ] श्रने जेम त्याग वधारे तेम अहिंसाचरण वधारे. माटे श्रमणनी मर्यादामां खेती वर्ण्य होई शके, परन्तु गृहस्थ माटे-श्रावक 'माटे-खती निषिद्ध नथी ज. अनां वीजां प्रमाण तपासतां पहेला श्रे जाई लईए के साधुनी अहिंसा अने गृहस्थनी अहिसानी मर्यादामा केटलो फर्क हाई शके ? भानु विवरण 'श्री सम्यक्त्व मूलवारव्रतनीटीप' मां छे, तेनुं अवतरण नीचे यापुंछु "साधुने वीश विश्वानी दया के अने गृहस्थ ने सवाविश्वानी दया छे. ते केवी रीते छे तेनो विवरो लखीरे छी. जगतमा जीवना वे भेद कह्या छे. अक थावर वीजा बस, ''तेमां थावरना वली सूक्ष्म, वादर श्रेचे भेद छे, तेमां पण "सूक्ष्मनी हिंसा नथी, कारण अति सूक्ष्म जीवना शरीरने वाद्य शस्त्रनो धाव लागतो नथी, तेमने स्वकाय अटले पोतानी जातीना जीवोथी घात छे. पण बादर नथी-ओमाटे अहींया सूक्ष्म शब्द थी पण जाणवू के थावर जीव पृथ्वी, पाणी, अग्नि, वायु, वनस्पतिरूप बादर अपांचे थावर तेमने सूक्ष्म कहीरे अने थूल अटले बैंद्रि. ३द्रि, चौरेंद्रि पंचेन्द्रि रूप जाणवा ओ जीवमा मूल भेद वे छे. तेमां सर्व जीव श्राव्या, तेश्रो सर्वनी त्रिकरण शुद्ध साधु रक्षा करे छे. ते माटे वीश विश्वानी दया मुनिने छे. पण श्रावकधी नो पांच थावरनी दया पाली शकाय नाहि. सचित्त आहारादि कारगाश्री अवश्य हिंसा थाय छे. माटे दश
SR No.010399
Book TitleKrushi Karm aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherShobhachad Bharilla
Publication Year
Total Pages103
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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