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________________ [ १२ । गया है, पर खेती करना कुव्यसनों के अन्तर्गत नहीं है। श्रावक को सात कुव्यसनों का त्याग करना आवश्यक है। अगर जुए की अपेक्षा खेती में अधिक पाप होता तो कुव्यसनों की अपेक्षा खेती का पहले त्याग करना आवश्यक होता । परन्तु शास्त्र कहते हैं-अानन्द जैसे धुरंधर श्रावक ने श्रावकधर्म धारण करने के पश्चात् भी खेती करने का त्याग नहीं किया था। जो लोग यह समझते हैं कि हमें विना विगेप आरंभ किये, बाजार से ही धान्य मिल सकता है तो धान्योपार्जन करने के लिए आरंभ-समारंभ क्यों किया जाय ? भले ही खेती में महारंभ न हो, किन्तु जिस प्रारंभ से बचना संभव है. उससे क्यों न बचना चाहिए ? इस प्रश्न का समाधान करने के लिए प्राचार्य सोमदेव सूरि की यह सूक्ति ध्यान देने योग्य हैक्रीतेप्वाहारेप्विव पण्यस्त्रीपु क यास्वादः ? -नीतिवाक्यामृत, वासिमुदेश । आचार्य ने यहाँ खरीदे हुए आहार और वेश्या की तुलना की है। यह तुलना बड़ी बोधप्रद है और धार्मिक भी है। विवाह करने में अनेक प्रारंभ-समारंभ करने पड़ते हैं, सैकड़ों तरह की झंझटों में पड़ना पड़ता है, बाल-बच्चों की परम्परा चलती है और उस परम्परा से पाप की परम्परा बढ़ती चलती है। स्त्री और बालबच्चों के भरण-पोषण के
SR No.010399
Book TitleKrushi Karm aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherShobhachad Bharilla
Publication Year
Total Pages103
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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