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________________ निश्चिन्तो मृदुरनिशं कलापरो धीरललितः स्यात् ।' २. धीरशान्तः - सामान्य गुणो से युक्त द्विज आदि नायक तो धीर प्रशान्त कहलाता है। “सामान्यगुणयुक्तस्तु धीरशान्तो द्विजादिकः''। ३. धीरोदात्तः - उत्कृष्ट अन्तःकरण (सत्त्व) वाला अत्यन्त गम्भीर, क्षमाशील आत्मश्लाघा नकरने वाला, स्थिर अहंभाव को दबाकर रखने वाला, दृढव्रती नायक धीरोदात्त कहलाता है 'महासत्वोऽतिगम्भीरः क्षमावानविकत्थनः'। स्थिरो निगूढाहङ्कारो धीरोदात्तो दृढ़व्रतः।।* धीरोदात्त की परिभाषा आचार्य विश्वनाथ ने दी हैअविकत्थनः क्षमावानतिगम्भीरो महासत्त्वः। स्थेयन्निगूढमानो धीरोदात्तो दृढव्रतः कथितः।' अर्थात् आत्मश्लाघा की भावनाओं से रहित, क्षमाशील, अति गम्भीर . दुःख-सुख में प्रकृतिस्थ, स्वभावतः स्थिर और स्वाभिमानी किन्तु विनीत कहा गया है। ४. धीरोद्धतः - दर्पमात्सर्यभूयिष्ठो मायाच्छद्मपरायणः। धीरोद्धतस्त्वहङ्कारी चलश्चण्डो विकत्थनः।।' दशरूपकम् २१/पृ. सं. ११४ साहित्यदर्पण पृ. सं. १४० साहित्यदर्पण पृ. सं. ११४ साहित्यदर्पण पृ. सं. २१४ साहित्यदर्पण पु. सं. १३९, ३/३२ दशरूपकम् पृ. सं. १२०, २/६ .
SR No.010397
Book TitleJain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Dwivedi
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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