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________________ 62 जबकि इस दूतकाव्य का विषय धार्मिक एवं ज्ञानपरक है फिर भी निश्चित रूप से यह कहने में मत भेद है कि यह दूतकाव्य जैन धर्म से सम्बद्ध है। शिष्य ने गुरू के लिए "श्री सुरीन्द्राः" 'श्री सुरीश्वराः' जैसे विशेषणो का प्रयोग किया है तथा जैन धर्म का उल्लेख किया है। अतः इसी आधार पर यह कहा जाता है कि यह दूतकाव्य जैन कवि द्वारा विरचित है मेघूदत के शृङ्गार रस के प्रेरणा पाकर कवि ने अद्वितीय प्रतिभा से काव्य को शान्त रस से विभुषित किया है। उपर्युक्त दूतकाव्यो के वर्णन से ऐसा परिलक्षित होता है कि जैनकवियों को दूतकाव्य का निर्माण करने मे अत्यधिक रूचि थी। इसीलिए इन्होंने अधिक से अधिक दूतकाव्यों की रचना करके दूतकाव्य की परम्परा को आगे बढ़ाने मे अपना महनीय योगदान दिया। इन्होंने अपने काव्य मे अनेक नवीन प्रयोग भी किये हैं। जैसे इन्होने विज्ञप्ति पत्रों को भी दूतकाव्यात्मक शैली में प्रस्तुत किया है। इसी प्रकार शृङ्गार रस से ओत-प्रोत काव्यों का शान्तरस में पर्यवसान करके दूतकाव्य को एक नया मोड़ दिया। जैन कवियों ने इन्हीं दूतकाव्यों के माध्यम से अपने जैनधर्म के धार्मिक नियमों, सामाजिक नियमोंसंस्कारों एवं तात्त्विक सिद्धान्तों को जनसाधारण तक पहुँचाया है। इस प्रकार जैन कवियों द्वारा रचित दूतकाव्यों का संस्कृत साहित्य में स्थान है ।
SR No.010397
Book TitleJain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Dwivedi
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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