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________________ वचनदूतम् - ' यह दूतकाव्य इस परम्परा का सबसे नवीन दूतकाव्य है। पं. मूलचन्द्र शास्त्री ने इसे दो भागों में विभाजित किया है। यह दूतकाव्य जैनधर्म के २३वे तीर्थकर भगवान श्री नेमिनाथ के जीवन से सम्बन्धित है। काव्य के प्रारम्भ मे कवि ने राजुल के आत्मनिवेदन को प्रस्तुत किया है तथा उत्तरार्ध मे इस वियोगिनी की व्यथा को परिजनों के द्वारा निवेदित करवाया है। नेमि और राजुल का प्रसंग न केवल वैराग्य का एक अप्रतिम विचोरोतेजक मर्मस्पर्शी प्रसंग रहा है। अपितु उसने साहित्य विशेषतः काव्य को भी प्रभावित किया है। कवि ने राजीमती के विरह वियोग को बड़ी मनोहारी हृदयावर्जक शैली में प्रस्ततु किया है। कालिदास द्वारा विरचित मेघदूतम् की अन्तिम श्लोक की पंक्ति को लेकर यह दूतकाव्य रचा गया है। जिसमें कवि ने नेमि और राजुल के मार्मिक प्रसंग को सफलतापूर्वक प्रस्तुत किया है। वैराग्य की पृष्ठिभूमि के साथ-साथ अहिंसा, करूणा और साधना के प्रतिपादन के विषय में यह काव्य अनूठा है। चूतोदूतम् -' इस दूतकाव्य की भी रचना मेघदूतम् के अन्तिमचरणो को लेकर समस्यापूर्ति स्वरूप की गई है। कवि के विषय में विशेष जानकारी नहीं मिल पाती है। इस दूतकाव्य की कथा भी विशेष नही है, इसकी कथा इस प्रकार है- एक शिष्य अपने गुरू के श्री चरणो की कृपादृष्टि को अपनी प्रेयसी के रूप मे मानकर उसके पास अपने चित्त को दूत बनाकर भेजता है। मेघदूत की समस्यापूर्ति के कारण काव्य मे मन्दाक्रान्ता छन्द भी प्रयुक्त है। काव्य मे कुल १२९ श्लोक है। प्रकाशित श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, महावीर जी साहित्य शोध विभाग, महावीर भवन सवाई मानासिंह हाइवे जयपूर। जैन आत्मानन्द सभा, भावनगर वि. सं. १९७० मे प्रकाशित।
SR No.010397
Book TitleJain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Dwivedi
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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