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________________ इसमे ६१ श्लोक है। (२) उत्तर भाग इसमे ६० श्लोक हैं। मन्दाक्रान्ताछन्द का ही सम्पूर्ण काव्य में प्रयोग है। माधुर्य और प्रसाद गुण युक्त भाषा में ही काव्य की रचना की गई है। भाषा पर कवि का पूर्ण अधिकार है। स्थान-स्थान पर भाव पूर्ण सूक्तियाँ और उदात्त वर्णन इस काव्य मे दृष्टिगोचर होते है जैसे को वा लोके विरहजनितां वेदनां सोदुमी। अतः यह सन्देश काव्य प्रथम कोटि की साहित्यक रचना है। मनोदूत'- दूत काव्यो की परम्परा मे इस मनोदूत काव्य का एक विशिष्ट स्थान है। इस दूतकाव्य के रचयिता विष्णुदास हैं। मनोदूत का रचनाकाल वि० सं० १५२१ है। जैसा कि काव्य के नाम से स्पष्ट है इस काव्य में मन को दूत बनाया गया है। कवि विष्णु दास स्वयं एक भक्त के रूप मे पाठको के समक्ष इस काव्य में आते हैं। संसार में लोगों के पापों और दुःखो की चिन्ता करते, विकल होकर वे भगवान कृष्ण की शरण में जाने का विचार करते है। वे अपने मन को दूत बनाकर भगवान के चरण कमलो में अपना नम्र निवेदन सन्देश के रूप में भेजने की चेष्टा करते हैं। इस दूतकाव्य मे भावों की सरलता के साथ-साथ भाषा भी बड़ी मधुर और ललित है। शान्त रस के अनुकूल काव्य मे माधुर्य गुण और वेदर्भी रीति का ही अनुकरण है। काव्य में शब्द विन्यास का नैपुण्य है। बसन्तलिका छन्द है। कोक सन्देश':- यह दूतकाव्य त्रिवेन्द्रम संस्कृत सीरिज से प्रकाशित हुआ है। कोक सन्देश का रचनाकार विष्णुत्रात नामक कोई कवि है। इस काव्य में एक राजकुमार श्री विहारपुर से कामाराम नामक नगर में अपनी प्रेयसी के पास कोक के द्वारा अपना प्रेम सन्देश भेजता है। काव्य में मन्दाक्रान्ता छन्द है। काव्य की कथा काल्पनिक है। विप्रलम्भ श्रृंगार पूर्ण संस्कृत के सन्देश काव्य पृ० सं० ३४५-३५४ संस्कृत के सन्देश काव्य पृ० सं० ३६२
SR No.010397
Book TitleJain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Dwivedi
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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