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________________ मयूर संदेश' इस दूतकाव्य के रचयिता उदय कवि हैं। इस काव्य का रचनाकाल ई. पञ्चदश शतक का पूर्वार्ध अथवास १४०० ई. के कुछ बाद का समय ही मयूर सन्देश का रचनाकाल है। उपर्युक्त दूतकाव्य की कथावस्तु इस प्रकार है:- मालाबार के राजा श्रीकण्ठ के परिवार का कोई राजकुमार अपनी रानी मारचेमन्तिका के साथ प्रसाद की छत पर विहार कर रहा था। विद्याधर भूल से उसको पार्वती के साथ स्वच्छन्द विहार मे संलग्न साक्षात् शिव समझ बैठे। उनकी इस भूल पर यह राजकुमार उनका उपहास करने लगा। विद्याधरो ने इस पर राजा को एक मास के लिए अपनी प्रेयसी से वियुक्त रहने का शाप दे दिया। राजा के प्रार्थना करने पर किसी तरह विद्याधरों ने उसे स्यानन्दूर मे रहने की अनुमति दे दी। अपनी प्रेयसी के विरह मे निमग्न वह राजा मयूर द्वारा अपनी प्रेयसी के पास अन्नकर नगरी मे सन्देश भेजता है । इस दूतकाव्य के पूर्वभाग और उत्तर भाग दो भाग है । पूर्वभाग में १०७ और उत्तर भाग मे ९२ श्लोक है। विचार तारतम्य वस्तु वर्णन छन्द तथा शिल्पविधान की दृष्टि से यह काव्य मेघ संदेश का सफल अनुकरण है। माधुर्य और प्रसाद गुण होने पर भी लम्बे और क्लिष्ट समास है। उदाहरण अविरतमदधारा धोरणी पारणोदयन् । मदमधुकरमालाकूजितोद्घोषिताराम् ।। १ - हंसदूत' - इस दूतकाव्य के रचनाकार वामन भट्ट बाण हैं। हंसदूत का समयकाल वि० पञ्चदश शतक है। हंसदूत काव्य की कथा मेघदूत की जैसी है। इस दूत काव्य मे केवल इतना भेद है कि हंसदूत में यक्ष रामगिरि पर्वत पर न रहकर सुदूर दक्षिण भारत मे कैलाश पर्वत पर रहता है और मेघ के स्थान पर हंस को अपना दूत बनाता है। इसके दो भाग है (१) पूर्व भाग २ 19 सं० के सन्देश काव्य प्र० सं० ३३३ सं० के सन्देश काव्य प्र० सं० ३३३
SR No.010397
Book TitleJain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Dwivedi
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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