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________________ 16 भारत के कांचीपुर नगर की कोई स्त्री किसी उत्सव के अवसर पर श्री कृष्ण की विजय यात्रा देखकर उनके प्रेम मे मुग्ध हो जाती है। इस प्रकार व्याकुल अवस्था मे उसका कुछ समय व्यतीत हो जाता है। अन्त मे कृष्ण-विरह में चिन्तित वह घूमते-घूमते पुष्पवाटिका पहुंचती है। वहाँ उसे एक राजहंस दिखाई देता है। वह उसका स्वागत करती है तथा उससे कुशलवार्ता इत्यादि पूछती है। अन्त मे अपने प्रिय कृष्ण के पास सन्देश ले जाने के लिए प्रार्थना करती है। समग्र काव्य मे कुल १०२ श्लोक हैं। विषय की दृष्टि से यह काव्य सर्वथा नवीन है। इसके अतिरिक्त कवि की कल्पना तथा भाव-विन्यास भी बड़े सुन्दर है। सुकुमार भाव तथा अनुभूति के वर्णन के उपयुक्त माधुर्य प्रसाद गुणयुक्त भाषा है। काव्य मे वैदर्भी रीति है। हंस संन्देश' (वि० सं० चतुर्दश-शतक) - प्रस्तुत दूतकाव्य के रचयिता वेकटनाथ या वेदान्त देशिक हैं। इस दूतकाव्य की कथावस्तु रामायण से संबद्ध है। सीताजी की खोज करने बाद जब हनुमान जी लंका से लौट आते है, तब श्री रामचन्द्रजी रावण से युद्ध करने से पूर्व अन्तरिम काल मे सीताजी को सान्त्वना देने के लिए राजहंस को दूत बनाकर लंका भेजते हैं। इस दूतकाव्य मे दो आश्वास है। प्रथम आश्वास मे ६० तथा द्वितीय में ५१ श्लोक है। मन्दाकान्ता छन्द का ही काव्य मे प्रयोग है। काव्य की शैली बड़ी मधुर है। प्रसाद और माधुर्य गुण से काव्य ओत प्रोत है। क्लिष्ट और लम्बे समास प्रायः इस काव्य में नही है। हंस सन्देश नामक एक अन्य दूतकाव्य भी प्राप्त होता है। इस दूत काव्य के रचनाकार के बारे मे कुछ ज्ञात नहीं है। इस काव्य की कथा इस प्रकार है - कोई शिवभक्त शिवभक्तिरूपी अपनी अनन्य प्रेयसी के सुखद सम्पर्क से अद्वैतानन्द में मग्न था। अपने पूर्व कर्मों के प्रभाव से माया के संस्कृत के सन्देश काव्य पृ. सं. २६८
SR No.010397
Book TitleJain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Dwivedi
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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