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________________ 15 १८. कृष्ण सार्वभौम कवि का पदांकदूत १९. तैलंग ब्रजनाथ का मनोदूत २०. श्रीकृष्ण न्यायपञ्चानन का वातदूत २१. भोलानाथ का पान्थदूत २२. बिज्ञसूरि वीरराघवावार्य का हनुमदूतम् पवनदूत' (वि० द्वादश त्रयोदश शताब्दी) - पवनदूत एक सुन्दर दूतकाव्य है। यह कालिदास के मेघदूत के अनुकरण पर लिखा गया है। 'धूयि' 'धोयी' 'धोई' अथवा 'धोयिक' नामक कवि इसके रचयिता है। पवनदूत की श्लोक सं० १०१ तथा १०३ मे कवि ने अपने लिए स्वयं कविक्ष्माभृतां चक्रवर्ती और कवि नरपति कहा है। पवनदूतम् के अन्त मे भी इति श्री धोयीकविराजविरचितम् इत्यादि लेख मिलता है। पवनदूत की कथा इस प्रकार है कि गौड़ देश के राजा लक्ष्मण-सेन की दक्षिण दिग्विजय में मलयपर्वत पर कनक नगरी में रहने वाली कुवलयवती नाम की एक गन्धर्व . कन्या राजा को देखकर उससे प्रेम करने लगती है। राजा लक्ष्मणसेन बंगाल में जब अपनी राजधानी मे लौट आता है, तो कुवलयवती उसके विरह में बड़ी व्याकुल रहने लगती है। वसन्त ऋतु के आने पर वसन्त की वायु को अपना संदेश वाहक बना कर वह राजा के पास अपनी विरह व्यथा सुनाने के लिए भेजती है। मेघदूत के समान दूतकाव्य भी मन्दाकान्ता छन्दो मे लिखा गया है। भाषा सरल सरस और प्रसादगुण युक्त है। हंस सन्देश' (वि० त्रयोदश-शतक का प्रारम्भ) - इस दूतकाव्य के रचनाकार श्री पूर्णसारस्वात हैं। इस दूतकाव्य की कथा काल्पनिक है। दक्षिण संस्कृत के सन्देश काव्य पृ. सं. २३८ - डा. राम कु. आ. वही पृ. सं. २५३ '
SR No.010397
Book TitleJain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Dwivedi
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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