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________________ 159 'श्लेष प्रसादः समता समाधिः माधुर्ययोजः पदसौकुमार्यम् । अर्थस्य च व्यक्तिरूदारता च कान्तिश्च काव्यस्य रूपं गुणा दर्शते।।' अर्थात श्लेष, प्रसाद, समता, समाधि, माधुर्य, ओज, पद सौकुमार्य, अर्थव्यक्ति, उदारता, कान्ति ये दस गुण हैं। वामन ने भी दस गुणों की व्याख्या की है। आचार्य मम्मट का मत है कि काव्य मे माधुर्य, ओज तथा प्रसाद तीन ही गुण होते है। वामन आदि के कहे हुए दस गुण नही होते है। कारण यह है कि उनमें के कुछ गुण इन्हीं तीन के अन्तर्गत है तथा कुछ दोषों के अभाव मात्र है और उनमें से कुछ तो गुण पद के अधिकारी ही नही है क्योकिं किसी रूप में या किसी उदाहरण मे वे दोष रूप में ही दृष्टिगोचर होते है।' ___साहित्य दर्पणकार ने भी प्राचीन आलङ्कारिको के द्वारा शब्द गुण के रूप मे गिनाये गये गुणों को ओज गुण में समावेश किया है। साहित्यदर्पणकार ने भी गुणो के तीन प्रकारों को ही स्वीकार किया है:- 'माधुर्यमोजोऽथ प्रसाद इति ते त्रिधा।' इनमे माधुर्य गुण वह है जिसे एक ऐसा आह्लाद अथवा आनन्द कह सकते है जिसका स्वरूप सहृदय हृदय की 'द्रुति' अथवा 'द्रवीभूतता' है - 'चित्तद्रवीभावमयो ह्रादो माधुर्यमुच्यते।' काव्य प्रकाशकार के अनुसार चित्त की द्रुति का कारण जो अह्लादकता अर्थात आनन्द स्वरूपता है वही माधुर्य है और वह शृङ्गार रस में होता है'अह्लादकत्वं माधुर्य शृङ्गारे द्रुतिकारणम् ।' भरतमुनि नाट्य शास्त्र १७/९६ काव्यप्रकाश ८/९६ पृ. ४३० साहित्यदर्पण ८/ पृ. ६४३ काव्य प्रकाश ८/६८ पृ. ४१६
SR No.010397
Book TitleJain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Dwivedi
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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