SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 105 नेमि को उपदेश द्वारा वश मे नही किया जा सकता। अतः आज इन्हे घेरकर शीघ्र ही अपने वश में करके 'अबला' इस दोष को उसीप्रकार मिटा दो जैसे ज्ञान चित्तवृत्ति को अवरूद्ध एवं अपने वश में करके दोषों को दूर कर देता सत्या सत्यापितकृतकवाक्कोपमाचष्ट............-नोद्यः।' सातवीं पटरानी पद्मावती है जो बहुत शान्त एवं गम्भीर हैं। ये सभी को सलाह देती है कि हम लोगो को इन पर क्रोध नहीं करनी चाहिए अपितु प्रेम से ही मनाना चाहिए।' आठवीं पटरानी गान्धारी हैं जो व्यंग्य और प्रेम से मिश्रित बातें करती है। गान्धारी श्री नेमि को समझाती है कि जन्म से ही ब्रह्मचर्यव्रत धारण करके आप ब्रह्मा से ऊँचा पद तो पाओगे नही और शादी कर लेने पर भी आप उस पद को प्राप्त करेंगे ही। अतः “एवमस्तु" कहकर तुम हम सबको सुखी बनाओ। हम तुम्हारे पैरों पर गिरती हैं, हम सब तुम्हारी दासी है, हे ईश। उपर्युक्त चाटुकारिता से तो राज्य भी प्राप्त किया जा सकता है, अतः इस चाटुकारिता से हम लोगों को सुख तो दो। ___इस प्रकार श्रीकृष्ण की पटरानियाँ कोई साधारण नारी नहीं है। ये काम को भी जितने में समर्थ है तथा श्री नेमि जैसे गम्भीर व्यक्ति जिन स्वामी को भी अपनी बात को स्वीकार कराने में समर्थ हैं। समुद्रविजय- यदुपति समुद्रविजय कथानायक श्री नेमि के पिता है। काव्य में इनके नाम तथा गुणों का अति संक्षेप में उल्लेख प्राप्त होता हैं। इन्हें काव्य मे दसो दिशाओं के स्वामी ‘दशाह' नाम से सम्बोधित किया गया है'तस्मिन् मूर्त्ता इव दशदिशां नायकाः ये दशार्हाः"। ये अत्यधिक बलशाली, । जैनमेघदूतम् ३/१३ जै. मे. ३/१४
SR No.010397
Book TitleJain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Dwivedi
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy