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________________ 104 'नाभेयोपक्रममिह यथा श्रेयसोऽध्वा--..-जम्बिवत्यप्यगासीत् ।।' तीसरी पटरानी लक्ष्मणा है जो श्री नेमि को समझाते हए कहती है कि वे लोग ही लक्ष्मीवान् हैं जिनकी लक्ष्मी मेघ के जल की तरह दूसरों के उपयोग के काम आती है। यदि आपका रूप समुद्र के जल की तरह दूसरों के काम आने वाला नहीं है तो क्या आप भी, संसार मे उसी समुद्र की तरह विरक्त नही कहे जायेगे। इस प्रकार श्री नेमि को परोपकार करने के लिए कहती है। चौथी पत्नी का नाम सीमा है जो मितभाषिणी है। वे गृहस्थ आश्रम को बहुत अधिक महत्त्व देती है। वे श्री नेमि को समझाते हुए कहती है कि 'गृहस्थ ब्रह्मा की तरह निष्काम होकर अच्छा नहीं माना जाता है। अतः आप गुरूजनो की बात मानकर उपनी द्वितीय पत्नी को ग्रहण कर आगे के सौभाग्यादि को उसी प्रकार प्राप्त करेंगे जैसे सभी शुक्लपक्षों में चन्द्रमा द्वितीय तिथि का विस्तार कर अग्रिम कलाओं को प्राप्त करता है।२। ____ पाँचवी पटरानी गौरी हैं। ये श्री नेमि से अत्यधिक प्रेम करती हैं। ये प्रेमक्रोध के कारण लाल हो जाती हैं। गौरी व्यंगात्मक शैली में अपनी बात प्रस्तुत करती हैं, इनका कहना है कि हे आर्यापर! जो नारी भगवान् श्री शान्तिनाथ जैसे मुख्यजिनों के द्वारा भी मान्य है उस नारी से द्वेष करने वाले तुम कौन से सिद्ध हो? और भी देखो -महाव्रती भगवान शंकर भी गौरी को एक क्षण के लिए भी नहीं छोड़ते।' इसके पश्चात् सत्यभामादि का वर्णन मिलता है। सत्यभामा को अत्यधिक व्यावहारिक ज्ञान है। ये अपनी सखियों को सलाह देती हैं कि श्री जैनमेघदूतम् ३/९ जैनमेघदूतम् ३/१० जैनमेघदूतम् ३/१२
SR No.010397
Book TitleJain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Dwivedi
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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