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________________ ( ६६ ) मंडलियमायरो वा मंडलियंसि गर्भ वक्कममायंसि एएसिं चउदसरहं महासुमिणा अन्नयरं एगं महासुमियं पासित्ता णं पडिबुज्यंति ॥ ७७ ॥ हे राजन् हमारे स्वप्न शास्त्र में ७२ स्वम कहे हैं ४२ जघन्य हैं ३० उत्तम हैं उनतीस स्वप्नों में से चक्रवर्ती वा तीर्थंकर की माता जिस वक्त यह उत्तम पुरुष माता की कुक्षि पवित्र करते हैं उस समय १४ स्वप्न देखती है और वे हाथी से लेकर निर्धुम अग्नि तक हैं. वासुदेव की माता इसी तरह सात स्वम थार वलदेव की माता वो पुत्र रत्न आने पर ४ स्वप्न पूर्व के १४ स्वप्नों में से देखती है, और देखकर पीछे संपूर्ण जागती है. सामान्य राजा की माता एक प्रधान स्वम देखती हैं. इमे यणं देवापिया ! तिसलाए खत्तिप्राणीए चोद्दस महासुमिया दिट्ठा, तं उराला एवं देवागुप्पिया ! तिसलाए खत्तियाणीए सुमिणा दिट्ठा, जाव मंगल्लकारगा णं देवाणुपिया ! तिसलाए खत्तित्राणीए सुमिया दिट्टा, तंजहा प्रत्थलाभो देवाखुप्पिया ! भोगला भो० पुत्तलाभो० सुक्खलाभो० देवापिया ! रज्जलाभो देवागु० एवं खलु देवाशुपिया ! तिसला खत्तियाणी नवरहं मासाएं बहुपडिपुराणं श्रद्धट्टमाणं इंदियाणं व कंताणं, तुम्हं कुलकेउं कुलदीवं कुलपव्वयं कुलवडिंसगं कुलतिलयं कुलकित्तिकरं कुलवित्तिकरं कुलदिएयरं कुलाहारं कुल नंदिकरं कुलजसकरं कुलपायवं कुलतन्तुसंताविवणकरं सुकुमालपाणिपायं ग्रहीण व डिपुराएपंचिंदियसरीरं लक्खणवंजणगुणोववेचं माणुम्माणपमाणपडिपुराण सुजाय सब्बंग सुंदरंगं ससिसोमाकारं कंतं पियदंसणं सुरूवं दारयं पयाहिसि ॥ ७८ ॥
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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