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________________ ( ६८ ) युग स्वम देखकर प्रभात में देवगुरु की सेवा में रक्त रहे तो बुरा स्वम भी उत्तम फल देने वाला होजाता है. इत्यादि लौकिक शास्त्रों में स्त्रम फल बताये हैं. जैन शास्त्रानुसार स्वम फल । जो स्त्री वा पुरुष स्त्रम में एक बड़ा क्षीर वा घी का घड़ा वा मधु का घड़ा देखे वा उसे शिरपर चढ़ाया देखे तो वो प्राणी उसी भव में वोध पाकर मोक्ष में जाव अर्थात् जन्म मरण से मुक्त होजावे और रत्नों का ढेर वा सुवर्ण का ढेर पर चढ़ना देखे तो उसी भव में मुक्ति पात्रे किन्तु तृपुवा तांत्रा के ढेर पर चढना देखे तो दो भव में बोध पाकर मुक्ति पावे. स्वप्न में रत्नों से भरा हुवा घर देखे और भीतर जाकर अपना कब्जा करना देख्ने तो उसी भव में मुक्ति जावे इत्यादि जैनशास्त्रों में भी स्वम फल लिखा है एवं खलु देवाप्पिया ! म्हं सुमिणसत्थे वायालीसं सुमिया तीसं महासुमिणा वावन्तरि सव्वसुमिणा दिट्ठा, तत्थ णं देवापिया ! अरहंतमायरो वा चकवहिमायरो वा श्ररहंतंसि (ग्रं० ४०० ) वा चक्कहरंसि वा गर्भ वक्रममाणंसि एएसिं तीसाए महासुमिणाणं इमे चउदस महासुमिणे पासित्ता णं पडिवुज्झति ॥ ७३ ॥ तंजा, गयगाहा ॥ ७४ ॥ वासुदेवमायरो वा वासुदेवसि गव्र्भ वक्कममाणंसि एएसिं चउदसरहं महासुमिणाणं अन्नयरे सत्त महासुमिये पासित्ता पं पडिवुज्यंति ॥ ७५ ॥ बलदेवमायरो वा बलदेवंसि गर्भ वक्रममाणंसि एएसिं चञ्चद्दरहं महासुमिणाणं द्यन्नयरे चत्तारि महासुमिणे पासित्ता णं पडिवुति ॥ ७६ ॥
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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