SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २४ ) तक अवश्य तकलीफ हुई परन्तु गोशाला ने तो उसकी गर्मी से सातवे ही दिन प्राण छोड़ढिये. (इस अछेरे का विशेष अधिकार मूत्र में है सो वहां से देखले) @ महावीर प्रभु का गर्भापहरण ® महावीर प्रभु को देवानन्दा ग्राह्मणी की कुंख में से देवता ने राणी त्रिंशलादेवी की कुंख में लेजाकर रक्खें ये महावीर प्रभू का गर्भापहरण नामक दूसरा श्राश्चर्य वात हुई कारण पूर्व में कोई भी तीर्थकर का इस प्रकार से गर्भापहरण नहीं हुवा. @ स्त्री तीर्थकर छ धर्म में पुरुष को प्रधान माना है और उसका कारण भी यही है कि धर्म नायक जो तीर्थकर हैं वो सर्वदा पुरुष ही होते हैं परन्तु १९ वें तीर्थंकर श्रीमद मल्लिनाथ स्वामी स्त्रीवेद में उत्पन्न हुवे (पूर्व भव में पूर्णतया चारित्र आराधन कर कर तीर्थकर गोत्र वांध लिया किन्तु मित्रों से अधिक ऊंचा पद पाने की लालसा से तपश्चर्या में कपट किया अर्थात् तपस्या जादा की और मित्रों को कम वताई इसके कारण तीर्थकर के भव में स्त्रीवेद ग्रहण किया) प्रभावित पर्षदा। ऐसी मर्यादा है कि तीर्थंकर का उपदेश कभी निष्फल नहीं जाता अर्थात. ' तीर्थकर के उपदेश से अवश्यमेव किसी नकिसी को सभ्यकत्व की प्राप्ती होती है अथवा कोई शिक्षा ग्रहण करता है वा व्रत पञ्चक्खाण करता हैं. परन्तु जिस समय महावीर स्वामी को ऋजुवालिक नदी के किनारे केवल ज्ञान प्राप्त हुवा और देवताओं ने आकर समव सरण की रचना की और भगवान ने सभव सरण में विराजमान होकर प्रथम देशना दी उस समय श्रोतागणों की एक बडी भारी संख्या होते हुवे भी भगवान के उपदेश का असर प्रगट में किसी पर नहीं हुवा. यानी कोई भी प्राणीने न तो दीक्षा ली न समाकत प्राप्त किया और न व्रत पचवखाण किये. इसवास्ते यह भी एक आश्चर्य जनक वात हुई.
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy