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________________ ( २३ ) को फोड़ा उसमें से महा विकराल भयंकर दृष्टि विष सर्प निकला और उस सर्पने अपने विपद्वारा सूर्य के सम्मुख देखकर रुर्व को जलाने लगा. और सर्व को तो जलाकर भस्म कर दिये परन्तु उस हित शिक्षा देने वाले वृद्ध को बचा दिया. इस दृष्टांत द्वारा हे आनन्द तुं हित शिक्षक होकर तेरे गुरु को समझा कि मेरी ईर्पा न करे और अपनी सम्पदा में संतोष करे जो लोभ के वश होकर मेरा कहना न मानेगा और करेगा तो मैं सर्प की तरह मेरी लब्धी द्वारा जला दूंगा किन्तु तेरे को बचा दूंगा ऐसे गौशाला के कोप भरे वचन सुनकर आनन्द साधू भगवान के पास जाकर गौशाला के कहे हुवे सर्व वचन अक्षरशः कहे जिसको सुनकर तथा सर्व वार्ता को केवलज्ञान द्वारा जानकर अपने सर्व शिष्यों को वहां से हटा दिये अर्थात् अपने पास न विठला कर दूसरी जगह जाकर बैठने की आज्ञा दी और गोशाले से कोई प्रकार का उत्तर प्रत्युत्तर न करें ऐसा समझा दिया गोशाला इतने ही समय में वहां आ उपस्थित हुवा और कोपायमान होता हुवा जोर से कहने लगा कि हे प्रभु आप मेरी उत्पति ऐसी न जाहिर करे कि मैं गौशाला हूं आपका शिष्य गोशाला मरचुका मैं तो उसके शरीर को अधिक ताकतवर देखकर धारण कर लिया है मैं दूसरा हूं और थापका शिष्य गोशाला दूसरा था यह सुनकर भगवान मीठे वचनों से बोलने लगे कि हे गोशाला ऐसा करने से सत्यवार्ता नहीं छुप सकती और तूं गोशाला ही हैं इसमें किंचित् मात्र भी संदेह नहीं हो सकता ऐसे भगवान के वचन सुनकर गोशाला अत्यन्त क्रोधित हुवा और महावीर स्वामी को अनेक अपशब्द कहने लगा महावीर स्वामी ने तो उत्तर प्रत्युत्तर करना अघटित समझकर मौन धारण की परन्तु सर्वानुभूति और सुनक्षत्र नाम के दो शिष्यों को वो गोशाले के वचन सहन नहीं हुए और उसे उत्तर देने लगे गोशाला ने क्रोध में आकर उन दोनों साधुओं पर तेजुलेश्या का व्यवहार किया जिस द्वारा जलकर दोनों शिष्य देवलोक गये भगवान गोशाले के हित के लिये उपदेश करने लगे परन्तु जिस प्रकार सर्प को दूध पिलावे तो भी विपही होता हैं उसी प्रकार गोशाला भगवान के अनेक उपकारों को भूलता हुवा भगवान पर तेजुलेश्या का व्यवहार किया भगवान तो अत्यन्त पराक्रमी और तीर्थंकर थे इसलिये तेजुलेश्या भी उनकी तीन प्रदक्षिणा कर कर वापिस कर गोगा के शरीर में ही प्रवेश करगई- भगवान को भी उसकी गर्मी मे ६ महिने
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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