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________________ ( २५ ) कृष्ण वासुदेव का अपर कंका में जाना एक द्वीप का वासुदेव दूसरे द्वीप में नहीं जाने ऐसी मर्यादा है परन्तु श्रीकृष्ण वासुदेव पांडवों की स्त्री द्रोपदी जिसके रूप की प्रशंसा नारद मुनि के शुख से सुन कर धातकी खंड के भरत क्षेत्र की पर कंका नाम की नगरी का राजा पदमनाभ मोहित होगया और देवता द्वारा जो उसका मित्रथा हस्तिनापुर से अपने पास मंगवाली जिस को वापिस लाने के हेतु पांडवो के साथ लवण समुद्र के अधिष्टायक सुस्थित नामी देवकी सहायता से समुद्रपार कर अपरकंका नगरी गये यह नगरी कपिल वासुदेव के खंडमें थी. पदमनाम राजा को हराकर और द्रोपदी को साथ लेकर वापिस आते समय अपना शंख बजाया. शंख की आवाज सुनकर कपिल वासुदेव जो उस समय मुनि सुव्रत स्वामी के पास बैठा था. आश्चर्यान्वित होकर भगवान मुनि सुव्रत से पूछने लगा कि हे भगवान ये इतने जोर की किस चीज की आवाज हुई तब भगवान ने कहा कि हे वासुदेव अपरकंका नामी नगरी के राजा का मान मर्दन कर भरतखंड के श्रीकृष्ण नामी वासुदेव पीछे भरतखंड को यहां से जारहे है ये उनके शंख की आवाज है. भगवान से ये बात सुनकर और अपने समान दूसरे वासुदेव को अपने खंडमें आया हुवा सुन मिलने की इच्छा करता हुवा भगवान की आज्ञा ले समुद्र तटपर आया परन्तु श्रीकृष्ण वासुदेव पहिले ही आगे पहुंच चुके थे इसवास्ते मिलाप करने के हेतु वापिस बुलाने के वास्ते कपिल वासुदेव ने शंखकी आवाज की. श्रीकृष्ण वासुदेव अपने शंख की माफी (क्षमा) चाहने के हेतु आवाज की दो वासुदेवों का एक क्षेत्र में इस प्रकार से मिलना वा एक दूसरे के शंखकी ध्वनी सुनना आजतक कभी नहीं हुवा. इस लिये यह भी आश्चर्य जनक बात हुई. 1 सूर्य चन्द्र का मूल विमान से खाना | भगवान महावीर स्वामी को बंदना करने के लिये सूर्य चन्द्र मूल विमान से आपेपरन्तु ऐसा पूर्व में कभी नहीं हुवा. इसलिये यह भी आश्चर्य जनक बात हुई. हरिवंश की उत्पत्ति और युगलियों का नर्क जाना । युगलिक नर्क में कभी नहीं जाते ऐसी मर्यादा है परन्तु हारे वर्ष क्षेत्र का युगलिक का जोड़ा नर्क गया. उसका वर्णन इस प्रकार है. ऊपर कई हुचे ४
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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