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________________ ( २२) नारी में एक महावीर और दूसरा गांगाला ऐसे दो तीर्थकर आये हैं. इस शंका को निवारण करने के हेतु श्री गौतमस्वामी ने वापिस आकर भगवान से गोशाला की उत्पति पूछी. तो भगवान ने कहा कि हे गौनम, मोगाला शरवण ग्राम के मंखली नाम के ब्राह्मण की पत्नी मुभद्रा का पुत्र है. इसका जन्म च्यूकि गोशाला में हुवा था. इसलिये इसके माता पिताने इसका नाम गोशाला रक्खा. ब्राह्मणवृत्ति अनुसार यह गोशाला भी भिक्षा मांगता फिरता था. कारणवश आकर मेरा शिष्य हुवा. और छमस्थावस्था में मेरे पास ६ साल तक रहकर विद्या पही. तेजोलश्यापण सीखी है और फिर मुझसे जुदा होकर पार्श्वनाथ के शिष्यों से अष्टांग निमित्त सीखा. और अब केवल ज्ञानी नहीं होने परभी अपने तई तीर्थकर कहता है. ऐसे भगवान के मुख से मुनकर वहां बैठे हुचे श्रावकों ने नगरी में यत्र तत्र ये वान फैलाढी. यहांतक की गोशाले के कानों में भी ये वात पहुंची यह मुनकर उसे बड़ा क्रोध हुवा उसी समय आनन्द नाम के भगवान के शिष्य को गोचरी निमित्त रास्ते में जाते हुवे देखकर बुलाकर कहने लगा कि भो आनन्द मैं तुझे एक दृष्टांत कहता हूं सो मुन. किसी समय में बहुत से व्योपारी मिलकर माल लाने के निमित्त सवारियां इत्यादि लेकर विदेश जाने लगे. रास्ते में प्यास लगी परन्तु जंगल में बहुत दूढने परभी कहीं पानी न मिला परन्तु ४ मिट्टी के बड़े २ ढिगले नजर आये. व्यापारियों ने सोचाकि इनमें अवश्यमेव पानी होना चाहिये. इसवास्ते उनमें से एक को फोड़ा तो उसमें से निर्मल ठंडा जल निकला जिसके द्वारा सर्व ने अपनी प्यास बुझाई. और भविष्यत में ऐसी आपदा नहो, इसवास्ते बहुत से वर्तनों में भी जल भरलिया. परन्तु लोभ वश दूसरे को भी फोड़ना चाहा. तो उनमें से एक जो वृद्ध था कहने लगा कि हे भाईयों अपना कामतो होगया. अब दूसरे को फोड़ने से कोई काम नहीं. चलो इसे मत फोड़ा. परन्तु उन्होंने उसका कहना न मान दूसरे को फोडडाला उसमें से मुवर्ण मिला. अवतो वे सर्व बहुत खुश हुऐ और वृद्धको चिड़ा ने लगे. फिर भी वृद्धने जो अलोभी था कहा कि खैर अब चलो पर उन सब का तो सुवर्ण मिलने से लोभ और ज्यादा वढगया. उनने तीसरे को भी फोड़ा जिसमें से रत्न मिले तो सब खुशी से कूदपड़े और चौथे को भी फोड़ने के लिये तय्यार हुए, वृद्ध ने फिर ना कही पर अवतो उसकी मुन ही कान तुरंत चोथ
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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