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________________ ( २१) सूत्र १८. . अस्थि पुण एसे वि भावे लोगच्छेरयभूए अयंताहिं उस्सपिणीअोसप्पिणीहि विइकंताहिं समुप्पज्जइ, (ग्रं, १००) नामगुत्तस्स वा कम्मस्स अक्खीणस्स अवेइअस्स अणिज्जिएणस्स उदएणं जणं अरहंता वा चकवट्टी वा बलदेवा वा वासुदेवा वा, अंतकुलेसु वा पंतकुलेसु वा तुच्छ० दरिद्द० भिक्खाग० किवण, आयाइंसु वा आयाइंति वा आयाइ संति वा, कुच्छिसि गम्भत्ताए पकमिंसु वा वकमंति वा वकमिस्संति वा, नो चेव णं जोणीजम्मणनिक्खमणेणं नि निक्खमंति वा निक्खमिस्संति वा ॥ १८॥ किन्तु कोई २ समय में ऐसे आश्चर्य रूप, कर्म भोगने बाकी रहने से एक चौवीसी में १० आश्चर्य जनक घटना होना सम्भव है. दस बड़े आश्चर्यों का वर्णन । वर्तमान अवसरप्पिणी कालमें जो दस आश्चर्य जनक बातें हुई उनका वर्णन. १-उपसर्ग, २ गर्भहरण, ३ स्त्रीतीर्थकर, ४ अभावितपरिषदा, ५ कृष्णवासुदेव का अपरकंकामें जाना ६ मूल विमान में चन्द्र सूर्य का आना ७ हरिवंश कुल की उत्पत्ति, ८ चमरेन्द्र का उपर जाना, ९ वड़ी कायावाले १०८ की एक साथ सिद्धि होना १० असंयति की पूजा होना. १-तीर्थंकर को प्रायः अशाता वेदनी कम होती है और केवल ज्ञान होने के पश्चात तो शातावेदनी का ही उदय होता है यह मर्यादा है किन्तु महावीर प्रभु को केवल ज्ञान होने के पहले ही बहुत उपसर्ग हुवे और वाद भी गोशाले का उपसर्ग हुवा. उसका वर्णन इस प्रकार है. एक समय श्रीमन् महावीर स्वामी ग्रामानुग्राम विहार करते हुये श्रावस्ती नामकी नगरी में पधारे और उसी समय में गोशाला भी वहीं आगया. और लोगो में कहने लगा कि मैं भी तीर्थकर हूं श्री गौतम स्वामी नगरीमें गोचरी लेनेको गये तो वहां लोगों के मुख से सुना कि इस
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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