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________________ (२०) वा पंतकुलेसु वा तुच्छकुलेसु वा दरिदकुलेसु वा किवणकुलेसु वा भिक्खागकुलेसु वा माहणकुलेसु वा, अायाइंसु वा, प्रायाइंति वा, आयाइस्संति वा ॥ १६ ॥ अद्यपि पर्यंत ऐसा कभी न तो हुवा न ऐसा होता है न ऐसा होना सम्भव है कि तीर्थकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव-शुद्रकुल अधम कुल, तुछकुल, कपण कुल, भिक्षाचर के कुल अथवा ब्राह्मण के कुल में उत्पन्न हुवे हो हान हो वा हांगे ( न आने का कारण यही है कि एस कुल के पुरुषों से जन्म महोत्सव इत्यादि यथोचिन नहीं हो सकते हैं) मंत्र ( १७ ) एवं खलु अरहंता वा चकवट्टी वा बलदेवा वा वासुदेवा वा, उग्गकुलेसु वा भोगकुलेसु वा राइगणकुलेसु वा इक्खागकुलेसु वा खत्तियकुलसु वा हरिवंसकुलेसु वा अन्नयरेसु वा तहप्पगारेसु विसुद्धजाइकुलवंमेसु धायाइंसु वा आयाइति वा आयाइरसंति वा ॥ १७॥ किन्तु अरिहंत, चक्रवनि, बलदेव, वासुदेव हर समय उग्रकुल, भोगकुल राजन्यकुल, इक्ष्वाकुकुल क्षत्रियकुल, हरिवंश कुल, वा अन्य ऐसे ही उत्तमकुल विशुद्ध, जानि वंश में उत्पन्न हुए है होते हैं और होवेंगे (क्योंकि ऐसे कूलों में जन्म महोत्सव इत्यादि अच्छी प्रकार से हो सकते हैं) कुलों की स्थापना ऋपभ देव स्वामी के समय में इस प्रकार से हुई. जो भगवान के आरक्षक थे वे उग्रकुल में माने गये जो गुरु पदमें थे वो भागकुलमें ना मित्र थे वो राजन्य कुल में जो भगवान के वंशके थे वो इक्ष्वाकु कुलमें हरि वर्ष क्षेत्र के युगलियों का परिवार हरिवंश कुलमें और जो भगवान की प्रजाके मनुष्य थे. सर्व क्षत्रिय कुलमें मान गय. परन्तु महावीर स्वामी ब्राह्मण कुलमें उत्पन्न हुए यह एक आचर्य जनक घटना हुई.
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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