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________________ (२२५) साधू साध्वी को चोमासे में तीन उपाश्रय होना चाहिये उसमें एकमें जो वारंवार उपयोग होता होवे उसकी वारंवार अर्थात् दिन में तीन वक्त प्रमार्जना करनी और आंखों से देखते रहना दो उपाश्रयों को दृष्टि से रोज देखना तीसरे दिन उसका काजा लेना. वासावासं पज्जोसवियाणं निग्गंथाण वा निग्गयीण वा कप्पइ अप्णयरिं दिसिंवा अणुदिसिं वाअवगिझिय भत्तपाणं गर्वसित्तए । से किमाहु भंते ! ! उस्सरणं समणो भगवंतो वासासु तवसंपउत्ता भवंति, तवरसी दुब्बले किलते मुच्छिज्ज वा पविडज्ज वा, तमेव दिस वा अणुदिसं वा समणा भगवंते पडिजागरंति ॥ ६१ ॥ कोई साधू साध्वी चोमासे में गोचरी जावे तो दूसरे साधू को कहकर जावे कि मैं उस दिशा में गोचरी जाता हूं क्योंकि तपस्वी साधू दुर्वल हो और रास्ते में थकजावे तो उसकी खबर लेने को दूसरा जावे. , वासावासं पज्जोसवियाणं कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गथीण वा गिलाणहेउं जाव चत्तारि पंच जोयणाई गंतुं पडिनियत्तए, अंतरावि से कप्पड वत्थए, नो से कप्पइ तं रयपि तत्थेव उवायणावित्तए, ।। ६२॥ , चोमासे में रहे हुए साधू को चोमासे में औपध का कारण पडने पर चार पांच जोजन (चार कोस का जोजन होता है ) जाना कल्पे परन्तु पीछा लोटना वहां रात न रहना रास्ते में रात्रि होवे तो गस्ते में रहसक्ता है. । इच्चेयं संवच्छरिअं थेरकप्पं अहासुतं अहाकप्पं अहामग्गं अहातचं सम्मं कारण फासित्ता पालित्ता सोभित्ता तीरित्ता किंट्टित्ता प्राराहित्ता प्राणाए अणुपालित्ता अत्थेगइश्रा तेणेव भवग्गहणेणं सिझति मुचंति परिनिव्वाइंति सव्वदुक्खाणमंतं करिति, अत्थेगइमा दुच्चेणं भवग्गहणेणं सिज्झति जाव. सव्वदुक्खाणमंतं करिति, अत्थेगइया तच्चेणं भ
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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