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________________ (२२४) ग्गथीण वा परं पज्जोसवण यो अहिंगणं वइत्तए, जे णं नि गंगथी वा निग्गंथो वा परं पज्जोसवणाओ अहिगरणं वयइ, से णं 'अकप्पेणं अज्जो ! वयसीति" वत्तब्वे सिया, जेणं निग्गंथो वा निग्गंथीवा परंपज्जोसवणाप्रो अहिगरणं वयइसे एं निजहियब्बे ॥ ५८ ॥ ___ साधु साध्वी को पर्युपणा पर्व से ज्यादह आपस में मलीन भाव न रखना चाहिये. कोई क्रोधादि करे तो दुसरं साधु शांति रखने को कहवे किन्तु कहने पर भी क्लेश करे तो उसका अलग रखना कि दूसरे साधूओं को असमाधि न होवे. वासावासं पज्जोसवियाएं इह खलु निग्गंथाण वा निग्गंधीण वा अज्जेव कक्खडे कडुए बुग्गहे समुप्पज्जिज्जा, सेहे राइणियं खामिज्जा, राइणिएवि सेहं खामिज्जा (प्र. १२०० ) खमियव्यं खमावियव उवसमियब्वं उवसमाविगव्वं संमुँइसंपुच्छणावहुलणं होयचं । जो उसमइ तस्स अस्थि राहणा, जो न उवसमइ तस्स नत्थि अाराहणा, तम्हा अप्पणा चेव उपसमियव्यं, से किमाहु भैते ! ! उवसमसार खु सामप्पं ॥ ५ ॥ चौमास में स्थित साधु साध्वी को कटु शब्द आक्रोश का शब्द लड़ाई का शब्द उत्पन्न होगया हो तो छोटा साधु बड़े को खमावं. वड़ा भी उसको खमाले। क्योंकि खमाना क्षमा करना शांति रखना शांति उत्पन्न कराना परस्पर पवित्र भाव से अच्छी बुद्धि से सुखशाता पूछकर परस्पर एकता करनी क्योंकि जो खमावे उसको आराधना है न खमारे उसको आराधना नहीं है। वासावासं पज्जोसवियाणं कप्पड़ निग्गंथाणं वा निग्गंथीण वा तो उवस्सया गिप्हित्तए, त०वेउब्बिया पडिलेहा साइज्जिया-पमज्जपा ॥ ६०
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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