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________________ वग्गणेणंजाव अतंकरिंति, सत्तट्ठभवग्गहणाई नाइक्कमति दशा उपर कहा हुआ साधू का चोमासा का प्राचार जैसा मूत्र में बताया ऐसा योग्य मार्ग को समझकर सच्चा और अच्छी तरह मनवचन काया से सेवन, पालन, कर शोभा कर जीवित पर्यंत आराध कर दूसरों को समझाकर स्वयं पाल कर जिनेश्वर की आज्ञा पालन कर उत्तम निग्रन्थ उसी भवमें केवलज्ञान पाकर सिद्धिपद को पाकर कर्म बन्धन से मुक्त होते हैं शांति पाते हैं सब दुःखो से हटते हैं कितनेक दूसरे भव में वही पद पात है. कोई तीसरे भव में मोच पाते हैं किन्तु सात आठ से ज्यादह भव नहीं होते अर्थात् मोक्ष देने वाला यह कल्प सूत्र है इसलिये उसकी सम्यक् प्रकार आराधना करनी. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे रायगिहें नगरे गुणसिलए चेइए वहूर्ण समणाणं वहणं समणणि वणं सावयाणं बहणं साविणाणं वहुएं देवाणं वहूणं देवीणं मझगए चेव एवमाइक्खह, एवं भासइ, एवं पण्णवेह, एवं परूवेइ, पज्जोसवणाकप्पो नाम अजयणं सअटुं सहेउग्रं सकारणं समुत्तं सअटुं सउभयं सवागरणं भुजो भुज्जो उवदंसेइ ति वेमि ॥ ६४ ॥ पज्जोसवणाकप्पो नाम दसासुअक्खंधस्स अट्ठमज्झयणंसंमत्तं ॥ (०१२१५.) . उस काल समय पर श्रमण भगवान महावीर ने राजग्रही नगरी गुण शैल चैत्य में बहुत साधू, साध्वी श्रावक श्राविका देव देवी की सभा में ऐसा कहा है ऐसा अर्थ समजाया है ऐसा विवेचन किया है ऐसा निरूपण किया है यह पर्युषणा ऋल्प नाम का अध्ययन हेतु प्रयोजन विषय वारम्बार शिष्यों के हिनार्थ कहा ऐसा अंत में श्रीभद्रबाहु स्वामी कहते हैं, कल्प सूत्र नाम का दशाश्रुत स्कंध का अध्ययन समाप्त । वीरोवीर शिरोमणि हदिरतः पापौघ विध्वंसकः । श्रेष्ठो मोह हरोनु मोहन मुनिः पन्यास हर्षस्तथा ॥ देवी दिव्य विमा सुधारस तनुः कंटे च वाणी स्थिता। तेषां पूर्ण कपा ममोपरियतो ग्रंथो मया ग्रंथितः ॥ १.!!
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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