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________________ . (२१५) अस्थिय इत्थ के पंचम खड्डए वा खुड्डिया इ वा अन्नेसिं वा संलोए सपड दुवारे एव रहं कप्पइ एगयत्रो चिठ्ठित्तए ॥ ३८ ॥ इस तरह साधु साध्वीश्रों ग्रहस्थ वा ग्रहस्थिणी के साथ उपर की तरह अकेले वा दो खड़े न रहने अर्थात् एक साधु एक ग्रहस्थिणी के साथ अथवा एक साध्वी एक ग्रहस्थी के साथ उपर मुजब खड़े न रहवे क्योंकि ब्रह्मचर्य व्रत के भंग की लोगों को शंका होवे अथवा मनमें दुर्ध्यान होवे इस तरह दो साधु एक ग्रहस्थिणी अथवा दो साधु दो ग्रहस्थिणी अथवा दो साध्वी दो ग्रहस्थों के साथ खड़ा रहना न कल्पे. किन्तु जाने आने वाले देखे ऐसे खड़े रहने में हरजा नहीं अथवा छोटा बच्चा साथहो. वासावासं पज्जोसवियस्त निग्गंथस्स गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए उवागच्छित्तए, तत्थ नो कप्पइ एगस्त निग्गंथएस एगाए य अगारीए एगयत्रो चिट्टित्तए, एवं चउभंगी । for i इत्थ as पंचमयर थेरे वा थेरिया वा अन्नेसिं वा संलोए सपडदुवारे, एवं कप्पर एगो चिट्ठित्तए । एवं चैव निग्गंथी आगा रस्स य भाषियव्वं ॥ ३६ ॥ इस तरह ग्रहस्थी के घरमें गोचरी' साधु साध्वी जावे तो भी उपरकी तरह साधु साध्वी समझ कर खड़े रहवे. वासावासं पज्जोसवियाणं नो कप्मइ निग्गंथाण वा निग्गंथी वा अपरिणाएवं अपरिणयस्स अट्ठा असणं वा १ पाणं वा २ खाइमं वा ३ साइमंवा ४ जाच पडिगाहित्तए ॥ ४०॥ परिणए भुंजिज्जा, से किमाहु भंते ? इच्छा परो इच्छा परो न भुजिज्जा ॥ ४१ ॥ साधू को साध्वी को चोमासे में दूसरे साधू साध्वियों को बिना पूछे
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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