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________________ ( २१४ ) सावनेम सूरे जेणेव उवस्सए तेणव उवागच्छित्तए, नो से कृप्पड़ तं रयणिं तत्थेव उवायणावित्तर || ३६ || साधु की गोचरी जाने बाद वर्षा हो तो प्रथम कहे हुए स्थान में खड़ा रहुवे परन्तु गोचरी थोड़ी आगई हो तो थोड़ी देर राहा देखकर एक स्थान में टकर गोची करने और पीछे पात्र साफ कर उपाश्रय में चला जांव. चाहे वर्षा होती होना भी सूर्यास्त पहले उपाश्रय में जाना चाहिये किन्तु रास्ते में वा गृहस्ती के घर में साधु को रहना नहीं चाहिये ( यहां पर वृष्टि के पानी में जीवों की विराधना का जो दोष है, उससे अधिक दोष साधु अकेला ग्रहस्य के घरमै वा उद्यान में रहे तो लगता है क्योंकि शील रक्षण उपाश्रय में ही अच्छी तरह रहयुक्ता हैं. वासावासं पज्जोसवियरस निग्गंथस्स निग्गंथीए वा गाहावsकुलं पिंडवायपडियाए गुपविट्ठस्स निगिज्जिय २ बुट्टिकाए निवइज्जा, कप्पड़ से यहे यारामंसि वा अहे उवस्सयंसि वा उवागच्छित्तए ॥ ३७ ॥ साबु साध्वी गोचरी जांव रास्ते में वृष्टि के कारण खड़ा रहना पड़े तो एक साधु एक साध्वी साथ खड़ा रहना न कल्प. एक साधु दो साध्वी को साथ रहना न कल्प दो साधु दो साध्वी को भी साथ रहना न कल्पे किन्तु एक छोटी साधी वा साधु होतो खड़े रहसकते हैं. अथवा तो जहां जाने आने वाले सबकी दृष्टि पड़नी होतो वहां खंड़ रहसकते हैं. तत्य नो कपड़ एगस्स निग्गंधस्स एगाए य निग्गंधीए एगयो चिट्टित्तए १, तत्थ नो कप्पड़ एगस्स निग्गंथस्स दुरहं निग्गंथीय एगयद्यां चिट्ठित्तएर, तत्थ नो कप्पड़ दुरहं निग्गंथापं एगाए निग्गंथीए य एगयच्यो चिट्ठित्तए ३ । तत्थ नो कप्पड़ दुरहं निग्गंथाणं दुग्रहं निग्गंथी य एगयो चिट्ठित्तए ४ |
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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